पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१७०

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. गुजरात और महाराष्ट्र समाज के अभिनन्दनोत्सव में हमें अपने व्यापारी और धनिक लोगों से उनका इल्म भी लेना पड़ेगा, उनका साथ भी हमें लेना पड़ेगा। उनसे भी हम कहेंगे कि आओ भाई, मुल्क जैसे हमारा है, वैसे तुम्हारा भी है। मुल्क में आज बहुत मैदान पड़ा है, उसमें जितना काम आप कर सको, करो । परदेसियों के समय जितना तुम करते थे, इससे ज्यादा करने का मौका अब तुम्हें मिलेगा। हालत यह है कि धनी हम से डरते हैं। हमारा उनको भरोसा नहीं है। हम उनका भरोसा नहीं करते। इस तरह से काम नहीं चलेगा। हमें एक दूसरे पर विश्वास पैदा करना चाहिए। तभी काम चल सकता है। मजदूरों का धनिकों के साथ झगड़ा, प्रान्त का प्रान्त के साथ झगड़ा। हम इसी तरह से आपस में झगड़ा करते रहे, तो इस से हमारे देश का काम न चलेगा। हम हिन्दुस्तान के किसी भी प्रान्त में रहते हैं, असल में हम सब हिन्दुस्तानी हैं। हमारा यह प्रथम कर्तव्य है कि हम हिन्दुस्तान को रक्षा को मजबूत करें और हिन्दुस्तान की आजादी की पुष्टि करें। सब को एक साथ मिलकर दशहरे जैसे राष्ट्र के पर्व पर संकल्प करना है कि हम पहले जैसे खुशहाल थे, उसी प्रकार हम खुशहाल बनेंगे और अपने देश को उठाएँगे। आप महाराष्ट्र और गुजरात के लोग दोनों यहां मिले हैं, वह तो एक गंगा जमुना के संगम जैसा है। लेकिन हमें तो हिन्द सागर जैसा बनना है, जिस में भारत की सब नदियां मिलती हैं। मुझे आशा है कि अब मुल्क में ईर्ष्या का जहर, या इसी तरह की कोई नीच भावना नहीं रहेगी और सब प्रेम से मिल-जुलकर अपना काम करेंगे । इस तरह यहां ऐसा वायुमण्डल बनेगा, जिसमें हमें मुल्क को उठाने के लिए बहुत मौका मिलेगा। हमारे नौजवानों को बहुत काम करना है। हमने तो कोशिश करके जितना हम कर सकते थे, वह कर लिया। आज हमारे नौजवानों के लिए मैदान खुला पड़ा है। और उन्हें काम करने का बहुत मौका है । लेकिन अगर वे काम करना छोड़ देंगे और ऐसा समझेंगे कि बस एक आर्टिकल लिख लिया या एक व्याख्यान दे दिया तो उस से काम न चलेगा। उससे कोई नेता- गिरी अब नहीं मिलेगी। लोग तो अब उसी को पसन्द करेंगे जो काम कर के दिखाए । तो स्वराज्य की बहुत जोखिमदारी है । गुलामी में तो हमें एक ही रास्ते पर चलना था कि जिस किसी तरह परदेसी को हटाओ। लेकिन यह जो आपस में झगड़े की बात है, और आपस की कमजोरी है, हमारे खुद के भीतर की कमजोरी है, उसको हटाना बहुत ही कठिन काम है । हमें अपने में