पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१७२

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(११) चौपाटी, बम्बई ३० अक्तूबर, १९४८ बम्बई प्रान्तिक कांग्रेस समिति के प्रतिनिधि गण, बम्बई निवासी भाइयो और बह्नो ! आप लोगों ने मेरे प्रति जो अद्भुत प्रेम दिखाया है, उसके लिए प्रथम तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैं आपका अत्यन्त ऋणी हूँ और आप का शुक्रिया अदा करता । जो बात भाई पाटिल ने मेरे बारे में आपके सामने कही है, उसके बारे में मैं आप का समय नहीं लूंगा और कुछ नहीं कहूँगा। संक्षेप में में इतना ही कहना चाहता हूँ कि इन्सान कुछ नहीं कर सकता। जो कुछ होता है, वह तो इन्सान को प्रतीक लेकर होता है। करने वाली शक्ति जो उसके पोछे है, वह सामने नहीं आती। इसमें जो ईश्वर की इच्छा होती है, वही होता है । आज करीब एक साल के बाद मुझे आप लोगों के दर्शन करने का मौका मिला है । मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ और मांगता हूँ कि आप लोगों का मेरे प्रति जो प्रेम है, जो सद्भावना है, मैं उसके लायक बनूं । अब मेरी उम्र भी काफी हो चुकी है और आराम करने का मेरा अधिकार हो गया है । लेकिन दिल चाहता है कि जो चन्द दिन बाकी हैं, उनमें भी कुछ काम हो जाए और हिन्दुस्तान किसी तरह से स्थिर हो जाए। हमारा देश मजबूत हो जाए और भविष्य में कोई खतरा न रहे, तो अच्छा है। इसलिए इन बचे हुए दिनों