पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१७३

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भारत की एकता का निर्माण में, जितनी भी हो सके मैं कोशिश करना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि हिन्दु- स्तान पर पिछले एक साल में बहुत मुसीबतें पड़ी हैं, हमें बहुत-सी कठिनाइयों में से गुजरना पड़ा है । हमको दिन-रात चिन्ता रहती थी कि यदि हम से कोई अपराध हो गया, तो हिन्दुस्तान नीचे गिर जाएगा। इसलिए हमें रात- दिन सावधान रहना पड़ता था। किसी को जिस की उम्मीद नहीं थी, ख्याल तक नहीं था और न जिस का कोई मनसूबा ही था, ईश्वर की इच्छा से वही काम हो गया। जब मैंने हिन्दुस्तान के दो टुकड़े मंजूर किए, तब मेरा दिल दर्द से भरा हुआ था और मेरे साथियों की भी यही हालत थी। हम लोगों ने राजी-खुशी से इस चीज को स्वीकार नहीं किया। हमने लाचारी से इसे कबूल किया । तो भी वह सच्चे दिल से किया। क्योंकि हमारे दिल में कोई पाप नहीं था। हम चाहते थे कि हम जब साथ नहीं रह सकते, तो अलग ही हो जाना ठीक है। और हमने यह भी देखा कि अगर आज अलग नहीं होंगे, तो हिन्दुस्तान के दो टुकड़े तो क्या टुकड़े टुकड़े होने जा रहे हैं, जिसका परिणाम बहुत बुरा होगा। हमने जो हिन्दु- स्तान की स्वतन्त्रता के लिए इतने साल कोशिश की, हमारी वह सारी कोशिश मिट्टी में मिल जाएगी और हमको आजादी नहीं मिल सकेगी। क्योंकि तब हम आपस में बुरी तरह से लड़ रहे थे। जहां-जहां मौका मिलता था, वहां एक दूसरे की जड़ काट रहे थे । इस हालत में मुल्क का आजाद होना मुश्किल या। तब हमारे सिर पर एक तीसरी सत्ता बैठी थी, जो उसका पूरा फायदा उठाती थी । हमने सोचा कि हमारा प्रथम कर्तव्य है कि इस सत्ता को यहां से हटा दिया जाए और जितनी भी जल्दी हो सके उसे हटाया जाए। उसके लिए जितनी भी कीमत अदा करनी पड़े, हम देंगे। इसलिए हमने यह मंजूर कर लिया कि यदि हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता चन्द दिनों में स्वीकार हो जाए और विदेशी हुकूमत यहां से जल्दी हट जाए, तो हम इस प्रकार के टुकड़े हजम कर लेंगे। और हमने उन्हें हजम भी कर लिया। परिणाम हुआ, हमने भोग लिया । बहुत लोगों को कष्ट हुआ और आज भी हो रहा है। एक जिन्दा अवयव हमारे शरीर से काट लिया गया। हमारे अंग से बहुत सा खून गिरा, बहुत नुकसान हुआ। लेकिन जो नुक- सान होनेबाला था, उससे बहुत कम हुआ। उसका ख्याल मैंने अपने दिल में पूरा-पूरा रखा । इसलिए आज भी, जबकि मैंने यह विभाजन स्वीकार किया था, उसका जो