पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१८३

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. भारत की एकता का निर्माण है, वह जानते हैं वे कैसा काम करते हैं। बाहर वाले लोग कुछ भी नहीं जानते कि भीतर की हालत क्या है। राम ही जानते हैं और कोई क्या जाने ! ऐसी तो हमारी हालत है । तो मैंने कहा कि बहुत थोड़े आदमी हमारे पास रहे हैं। इनमें से जो काम करने वाले लोग हैं, जिनको देश से प्रेम है, काम करने की लगन है, वे सदा हमारा साथ देते हैं। तो एक साल में रियासतों का काम हुआ और जो काश्मीर की लड़ाई का काम हो रहा है, उसमें अगर यह लोग दिल से साथ नहीं देते, तो यह काम नहीं हो पाते। जो लोग कहते हैं कि यह तो पुरानी सर्विस की रीति और ढंग है, वे एक प्रकार का अन्याय करते हैं। में इस मौके पर कहना चाहता हूँ कि आप इसे पूरी-पूरी तरह से समझ लें कि मारी मुसीबत और हमारी दिक्कतें क्या हैं ? काम करने वालों को क्या-क्या परेशानियाँ उठानी होती हैं, इसे भी आप पूरी तरह से समझ लें। ताकि आपको मालूम हो जाए कि हमें बाद में क्या करना है । अब जो सर्विस का खड्डा है, जो कमी है, उसे पूरने के लिए भी हम कोशिश कर रहे हैं। यह काम चन्द रोज़ में तो हो नहीं सकता। यह काम ऐसा नहीं है कि जो भी आदमी आया, उसे बैठा दिया जाए। इससे काम नहीं होगा। अब रही यह बात कि कंट्रोल को हमने काफी दिनों बाद क्यों उठाया। अब उठाया है, तो उसका नतीजा भी देख लिया । अब हम देख रहे हैं कि अनाज पूरा नहीं पड़ रहा है। कपड़े पर से भी कंट्रोल उठाया, उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। बहुत लोग गुस्से हुए। उनका अधिकार था। पर हम कितना भी गुस्सा करें, उससे हमारा काम नहीं चलेगा। हमें सोचना है कि हम किस तरह करें। बहुत से लोगों ने लड़ाई में पैसा कमाया। उसमें सरकार को टैक्स का पूरा भाग देना चाहिए था, वह भी नहीं दिया। वह लोग अब पैसा लेकर बैठे हैं, इधर नोटों का तोड़ा पड़ा है । वे बाहर निकालने में डरते हैं, क्योंकि पैसा बाहर निकालें, तो उस पर इन्कम टैक्स लगेगा । सो पैसा बाहर निकलता नहीं, और कोई इंडस्ट्री चलती नहीं। इधर काम बढ़ता जाता है। जब ज्यादा माल पैदा न हो, तो कीमतें बढ़ जाती हैं। मजदूरों को ज्यादा देना पड़ता है। अगर मजदूरों को ज्यादा दें, तो गवर्नमेंट सर्विस में जितने इम्प्लाइज ( कार्य- कर्ता) काम करते हैं, उनको ज्यादा देना पड़ता है। यह जो सिलसिला चलता है, वह कहाँ जा कर खत्म होता है, यह आप देखिए। चीन में एक जूता चाहिए, तो कितना रुपया देना पड़ता है, उसका हिसाब 5