पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१९२

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(१२) नागपुर विद्यापीठ में भाषण ३ नवम्बर, १९४८ आपके विद्यापीठ ने मेरे ऊपर जो प्रेम जाहिर किया है और जिस तरह आपने मेरा स्वागत किया है, इसलिए सबसे पहले मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। दान अनेक प्रकार के होते हैं और सुपात्र को ही दान देना ठीक होता है । लेकिन जो दान के योग्य नहीं होता, उसको दान नहीं देना चाहिए । पदवी का दान पदवी के योग्य पुरुष को दिया जाता है। लेकिन आपने उसके लिए मुझको पसन्द किया है और मेरे ऊपर ज़िन्दगी भर के लिए बोझ डाल दिया है । क्योंकि पदवी-दान में आपने लिख दिया है कि इस पदवी की योग्यता मुझमें मेरी जिन्दगी भर में रहे । ( हँसी ) यह मेरे लिए बड़ी मुसीबत की बात है। इसलिए मुझे कहना पड़ता है कि पदवी दान को मैंने जिन्दगी में कभी स्वीकार नहीं किया। यह मेरा धर्म नहीं है, मेरा कर्म नहीं । लेकिन आपके प्रेम में फंसा, इसलिए मैंने इसे कबूल किया । तो आप लोगों के आशीर्वाद से और ईश्वर की कृपा से मैं इस सम्मान को निबाह सकू, तो अच्छी बात है। नहीं तो उसके लिए आप और में दोनों दूषित हो जाएंगे। क्योंकि आपने जिसको पसन्द किया, वह समझ-सोचकर पसन्द करना था। नागपुर में जब मैं पिछली दफ़ा आया था, तो इसी जगह पर मैंने जो कुछ कहा था, उसका मुझे पूरा स्मरण है । आप लोगों को भी वह सब स्मरण