पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१९६

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नागपुर विद्यापीठ १७७ हमारी आजादी की जो लड़ाई थी, उस लड़ाई में त्याग, कुर्बानी, सत्य और अहिंसा आदि के तेजस्वी हथियार थे । उनका परिणाम भी बहुत उज्ज्वल नजर आता था। लेकिन जो विश्व युद्ध हुआ, उसके जो हथियार थे, वे संहार के थे। वे सब सृष्टि संहार के हथियार थे। उसके पीछे, जिस तरह समुद्र मन्थन के बाद जहर निकला था, उसी प्रकार का ज़हर निकल आया। अब यह जहर तो निकला, पर उस जहर को पीने वाला कोई न निकला ! परिणाम यह हुआ कि वह जलता रहा और आखिर फूट बहा । उससे दुनिया बहुत परेशान हुई। हम भी परेशान हैं। तो जो मुल्क आजाद थे, वे तो उसको हजम कर सकते हैं। लेकिन हमारी तरह जो गुलाम थे, क्योंकि आजादी तो हमें अब आकर मिली है, उनके लिए उसको हजम करना बहुत कठिन बन गया है । कोई ऐसा न समझे कि हम आजाद हो गए तो सब कुछ हमें स्वयमेव मिल गया । हमको अब काम करने की आजादी मिली है। यह बात हम सब को समझनी है। तो में आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आजादी की लड़ाई में हमने जो त्याग, कुर्बानी और बलिदान किया, उससे भी ज्यादा त्याग और बलिदान हमें आज उस आजादी को मजबूत बनाने में करना । हमें अपने देश को ऊपर उठाना है, भारत को अपने पैरों पर खड़ा करना है। अभी तो वह एक साल का बच्चा है। उसको हमें अच्छी तरह से और ऐसी खुराक देनी है, जिसे वह पचा सके और जिससे उसकी भूख बढ़े । आज हर एक हिन्दुस्तानी-को अपना कर्तव्य समझना चाहिए कि उसे देश की आजादी की हिफाज़त करनी है । जो युवक हमारे हिन्दुस्तान के विद्यापीठों में पले हैं, उन्हें यह बात विशेष रूप से समझनी हैं । जो विद्यार्थी यहां पढ़ रहे हैं और जो हमारे भविष्य के नागरिक हैं, उनका कर्तव्य है कि इन बातों को सोचें और समझे क्योंकि उनको कल सारे हिन्दुस्तान का बोझ उठाना है। हम समाजवाद, साम्यवाद और टीका-टिप्पणीवाद इन सब वादों को छोड़ दें। बाद का समय जब आएगा, तब हम भी उनपर बातें कर सकते हैं। परन्तु आज हमारे पास उसके लिए समय नहीं है । आज तो हमारे पास एक साल की स्वतन्त्रता है, वह भी टूटी-फूटी दशा में है। हमें सोचना है कि आज दुनिया में हमारी जगह कहाँ है ? हम कहाँ बैठे हैं ? हमारे आस-पास क्या वायुमण्डल है ? अगर इन सब चीजों को हम नहीं देखेंगे, तो आजादी हमको हजम नहीं होने पाएगी और भविष्य की प्रजा हमको शाप देगी, वह कहेगी एक तपस्वी ने अपनी भा० १२