पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२०३

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१८४ भारत की एकता का निर्माण हिन्दुस्तानी का, हर सिटिजन ( नागरिक ) का धर्म क्या है यह सब सीखने- सिखाने की आज ज़रूरत है । यूनिवर्सिटी में, विद्यापीठ में सभी जगह हमें कर्तव्य का पाठ सीखना है। यह चीज़ आप सीखें, तभी काम होगा । आज तो मैं नागपुर के हालात नहीं जानता। लेकिन बहुत-सी यूनिवर्सि- टियाँ मैने देखी हैं। जिनमें शिक्षा देनेवाले लोग यह समझते हैं कि हम समाजवाद सीखें, साम्यवाद सीखें, और उस पर बहस चलाएँ। यह ठीक है। इससे अपनी एक तर्क-वितर्क की शक्ति खिल जाएगी। लेकिन हिन्दुस्तान उससे ताकतवान नहीं बनेगा। हाँ, नौजवानों की विचार-शक्ति खिले, वह एक प्रकार की योग्यता है । लेकिन उसके साथ-साथ अगर अपनी जबाबदारी, अपनी जिम्मेवारी महसूस करना हम नहीं सीखेंगे और काम करने के लिए हाथ-पैर चलाना हम नहीं सीखेंगे, तो देश का काम नहीं होगा। हमने तो कहीं तर्कवाद या वितर्कवाद नहीं सीखा। हम पर तो जो बोझ आता रहा, उसको उठाते रहे । इस तरह संसार के विद्यापीठ से हमने कुछ- न-कुछ सीख लिया। जो कुछ सीखा, अपने अनुभव से सीखा । इस विद्या- लय में से, या नागपुर विद्यापीठ में से जो नौजवान निकलेंगे, वे क्या खाली तर्कवाद करते रहेंगे? क्या वे खाली टीका-टिप्पणी करने की सीख लेंगे या कुछ आर्टिकल लिखने या कुछ व्याख्यान देने की सीख लेंग? अगर केवल यही सब हुआ, तब तो पुरानी चाल चलनेवाली बात होगी। उसमें कोई फायदा न होगा। लेकिन बोझ उठाने के लिए हमें अपने कन्धे मजबूत कर लेने चाहिए । काम करने के लिए हमें अपने पैर मजबूती से गाड़ लेने चाहिए और काम करने की सीख लेनी चाहिए । हम भले ही न बोलें, मगर हमारा काम बोले । मैं तो चाहता हूँ कि हमारी जुबान कम बोले, काम ज्यादा बोले । इस प्रकार काम करने की बात आप सीख लेंगे, तो उससे आपका और देश का बहुत बड़ा फायदा होगा।