पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२०६

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स्टेट्स एडवाइजरी कौंसिल का उद्घाटन, नागपुर तब उनको मैंने दिल्ली में बुलवाया। महाराजा अभी इतना समझदार नहीं था, इसलिए मैंने उनके रिश्तेदार मयूरभंज के महाराजा को भी साथ ही बुलाया। तब वे दोनों दिल्ली में आए। मयूरभंज के महाराजा सयाने आदमी हैं, लेकिन वह बस्तर पर कुछ प्रभाव डाल सकेंगे, ऐसा मैंने नहीं पाया । महाराजा बस्तर तो अभी बहुत ही नाअनुभवी बच्चा था । उस निर्दोष से दस्तखत कराना मेरी राय से एक प्रकार का गुनाह था। उसको राज्य चलाने का न कोई अनुभव था और न इल्म था। तब इस मामले का क्या बनेगा, यह चीज कहाँ बैठेगी, इस बात का मुझे अन्देशा हुआ। मैंने सोचा कि जल्द ही पोलिटिकल डिपार्टमेंट को हटाया जाए, तो यह काम हो सकता है । यही एक किस्सा नहीं था। और भी बहुत से किस्से थे। कितने ही छोटे-छोटे लड़कों को गद्दी पर बिठा दिया गया था। तव हमारी यह कोशिश हुई कि हम इस पोलिटिकल डिपार्टमेंट से जितनी जल्द फारिग हो जाएँ, उतना ही अच्छा हो। पोलिटिकल डिपार्टमेंट भी कोशिश कर रहा था कि जाते-जाते जितना काम उसे अपने हित में करना है, वह सब कर लें। उधर मैं सोच रहा था कि भविष्य में रियासतों का क्या होना चाहिए, और किस तरह से काम होना चाहिए । तब मैंने एक ड्राफ्ट तैयार किया, जिसके अनुसार वह हक भारत सरकार को मिल जानेबाले थे। मैंने उन महाराजाओं को बुलाया और कहा कि इस बात पर विचार करने के लिए यदि आपको वक्त चाहिए, तो वक्त लो। लेकिन अपनी जिम्मेदारी समझ कर इस पर दस्तखत करो, तब मैं कबूल करूंगा। उन लोगों ने नहीं किया। मैं चला गया। मैं स्टेशन पर गया । वहाँ मैं रेल में बैठा था। वहाँ पर उन लोगों ने दस्तखत नहीं किए । लेकिन मेरे पीछे उन लोगों ने एक पैगाम भेजा कि एक घंटा ठहर जाइए । तो मैं रेलगाड़ी में ही ठहर गया और मेरा सेक्रेटरी उनके पास रहा। उसने उन लोगों को समझाया। तब उन लोगों ने दस्तखत कर दिए और मुझको ये दस्तखत रेल में भेज दिए। अब लोग तरह-तरह की बातें कहते हैं। बहुत से लोग तो समझकर कहते हैं और तारीफ करते हैं। और कई लोग यह कहते हैं कि यह तो हिटलर का काम किया। उन लोगों को यह मालूम नहीं था कि मैंने दस्तखत करवाए नहीं थ। मैंने तो उन्हीं पर छोड़ दिया था और में चला गया था। लेकिन उन