पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२०९

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१६० भारत की एकता का निर्माण बात है । पीछे गुजरात के सब राजा भी मिल गए । इस प्रकार सब रियासतें मिलने लगीं। उन पर किसी का भी दबाव नहीं था। इसका एक उदाहरण आपको देना चाहता हूँ। मयूरभंज के महाराजा मेरे पास आए और कहने लगे कि मैंने अपनी प्रजा को वचन दिया है कि हम तुम्हें जवाबदार राजतन्त्र देनेवाले हैं। इसके लिए हमारे यहाँ आजकल चुनाव भी चल रहा है । उन्होंने कहा कि उन लोगों को इस प्रकार का वचन देने के बाद अगर मैं उसमें से हट जाऊँ, तो मेरे ऊपर वचन भंग करने का आरोप आएगा। तब मैंने कहा कि मैं किसी पर दबाव नहीं डालूंगा । आप खुशी से अलग रहिए। लेकिन पीछे आपको पछताना पड़ेगा । तब मुझे याद करोगे । वह अलग रहे । आज तक भी बह अलग हैं। लेकिन आज जब ये रियासतें उसमें मिल गई, तब से वह अपने राज्य में अभी तक नहीं गए और न बहाँ जाना ही चाहते हैं । जब तक उनका राज्य उसमें न मिल जाए, तब तक वह वहाँ नहीं जाएँगे । अनुभव से उनको मालूम हो गया कि उसमें कोई मिठास नहीं है। तो अब वहाँ रेस्पां- सिबिल गवर्नमेंट के जो लोग थे, जिन्हें प्रतिनिधि मण्डल कहा जाता है, उन्होंने कहा कि हमें उड़ीसा में मिला दो। लोग भी यही कहते हैं । महाराजा का दिल भी उन्होंने देख लिया, और वे खुद भी चाहते हैं। तो अनुभव से उन लोगों को यह सब मालूम हुआ। लेकिन मध्यप्रान्त की सरकार और यहाँ के महाराजाओं ने बहुत सभ्यता और बहुत समझदारी से काम किया। उसके लिए मैं इन लोगों को मुबारकबाद देना चाहता हूँ। ( तालियाँ) क्योंकि एक साल पूरा बीत गया, और मेरे पास एक भी शिकायत नहीं आईं। न रैयत की ही तरफ से, न राजाओं की तरफ़ से और न गवर्नमेंट की तरफ से ही। यह बहुत खुशी की बात है। अब यह सब काम तो हुआ। छोटी-मोटी रियासतें सब मिल गई। उसके बाद हैदराबाद का जो सवाल आया, वह तो आपके सामने ही है । जो अभी बना है, उसे बताने में आपका समय नहीं लूंगा । लेकिन कहने का मतलब यह है कि मेरे काम की जो कदर आप करते हैं, उसका समय अभी नहीं आया । यह तो थोड़े से समय में इतना परिवर्तन हो गया है। राजाओं ने त्याग किया, उन्होंने अपनी सत्ता छोड़ दी। जिसे अपनी कोई कीमती चीज छोड़नी पड़ती है, वही इस तरह के काम की कदर कर सकता है । जिसने कभी कोई त्याग नहीं किया वह उसकी पूरी कदर नहीं कर सकता। मेरे दिल में इन