पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जहाज का जल-प्रवेश १६५ साथ जिस प्रकार हमारी आजादी की लड़ाई चलती रही, उसी प्रकार बल्कि उसके साथ-साथ, सिन्धिया कम्पनी की अपने क्षेत्र में लड़ाई चलती रही। जैसी कुर्वानी हम लोगों को यहाँ करनी पड़ी, उसी प्रकार की कुछ दूसरे ढंग से, इन लोगों को भी करनी पड़ी। उनका इतिहास, जो लोग उसमें हित रखते हैं, उन्हें मालूम है । और जब हम इस शिपिंग कम्पनी का इतिहास याद करते हैं, तब ऊपर से इन्हें दबाने की कितनी कोशिश की गई, वह सारा इतिहास भी हमारे सामने खड़ा हो जाता है । और ऐसे मौके पर हमें सबसे पहले ड्यूटी कुरीन का स्मरण आता है, जो एक स्वदेशाभिमानी गृहस्थ था और जिसका नाम चिदम्बरम् पिल्लाइ था। उसे किन-किन तरीकों से दबाया गया, उसे कितनी-कितनी कठिनाइयाँ और मुसीबतें सहन करनी पड़ीं, वह सब हमारे सामने आ जाता है। सिन्धिया कम्पनी ने यह सब लड़ाइयां अच्छी तरह से और वीरता से लड़ों और आखीर में उनमें सफलता पाई, जैसे हमने भी सफलता पाई । उनका और हमारा काम एक ही साथ पूरा हुआ है। दूसरी तरह से उनका भी काम स्वाधीनता-प्राप्ति से शुरू होता है, और हमारा भी शुरू होता है । हमारी आजादी एक साल की है। उनका जो काम सफल हुआ है, वह भी एक साल से शुरू हुआ है, जब हमारे प्रधान मन्त्री ने उनके बनाए पहले जहाज का जल- प्रवेश करवाया था । जैसी उनकी समस्याएँ हैं, जैसी उनकी ज़रूरतें हैं और जैसी उनकी मुसीबतें हैं, ठीक वैसी ही हमारी भी हैं । सिन्धिया कम्पनी अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही है, हाथ-पैर फेंक रही है और इधर- उधर से मदद की मांग कर रही है। हम भी यही कोशिश कर रहे हैं और चाह रहे हैं कि जिस किसी तरह से हम अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ। हमें आशा है कि चन्द दिनों में हम इन सब मुसीबतों का मुकाबला कर लेंगे लेकिन हमारे खुद खड़े रहने की कोशिश में हमें सिन्धिया कम्पनी की फ़तह- मन्दी की ज़रूरत है । क्योंकि उनके हित में हमारा हित भी समाया हुआ है। साथ ही हमारे हित में उनका हित है। सिन्धिया कम्पनी के संचालकों ने भारत सरकार के पास एक आवेदन- पत्र भेजा है और वे बहुत जल्दी कुछ-न-कुछ जवाब चाहते हैं। मेरा इस प्रकार यहाँ उसका जवाब देना कहाँ तक सही होगा, वह मैं नहीं जानता हूँ। क्योंकि हमारे उद्योग मन्त्री भी यहाँ ही बैठे हैं, और उस कोने पर अन्य नाना मन्त्री