पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२४

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अलाहाबाद युनिवर्सिटी यन्त्र में भी योग्य आदमियों की कमी हो गई है। हमें शासन सम्बन्धी कामों और नीतियों को देश की नई सीमाओं के अनुकूल बनाना है। हमें अपने आर्थिक, भौगोलिक, आदर्शवादी और सांस्कृतिक प्रश्नों को एक राजनीतिक तथ्य के आधीन करना पड़ रहा है । यह काम स्वयं ही अत्यन्त विशाल और दुष्कर है। इधर हमारी रक्षा की सविसेज भी अभी शैशवावस्था में हैं। उन्हें हमें मज- बूत बनाना है और आवश्यक शस्त्र देने हैं। हमें एक ओर तो जमींदारों और जमीन को जोतने वाले किसानों के और दूसरी ओर मिल मालिकों और कार- खानों में काम करने वाले मजदूरों के बीच के सम्बन्धों को ठीक करना है। इस सब के साथ-ही-साथ हमें अपनी सीमाओं पर भी उत्तर में, दक्षिण में, पूर्व में और पश्चिम में सभी ओर हमें सावधान रहना है । एशिया के बाकी देशों में भी घरेलू झगड़े हो रहे हैं। कितने ही देशों में आपस में युद्ध छिड़े हुए हैं। मुल्क की आजादी के दुश्मन अक्सर अन्दर ही होते हैं, वे बाहर से कम आते हैं। हमको बड़ी सावधानी से अपने राष्ट्र की एकता, पूर्णता, और सुरक्षा का एक ओर तो अन्दर की फूट डालने वाली शक्तियों से बचाव करना है, दूसरी ओर बाहर वालों के आक्रमण के मनसूबों से अपने देश को बचाना है। राष्ट्रीय पुननिर्माण में दूसरे काम भी अभी हमें करने हैं। इनमें प्रधान है, अपने जीवन स्तर को ऊंचा करना और अपने राष्ट्रीय चरित्र को ऊँचा बनाना । पहले काम के लिए हमें अपनी प्राकृतिक शक्तियों से काम लेना है और साइन्स के साधनों से पुरा फायदा उठाना है । दूसरे काम के लिए हमें अपनी समस्त राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को बिलकुल बदल देना होगा। भाइयो और बहनो, मुझे आशा है कि मैंने आपको इस बात का काफी परिचय दे दिया है कि एक राष्ट्र की हैसियत से और विश्व के नागरिक होने के नाते हमारे सामने जो समस्याएँ हैं, वे कितनी कठिन और नाजुक हैं। अब हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हम इन समस्याओं की विशालता और जल्दी- से-जल्दी उनको सुलझाने की आवश्यकता को पूरी तरह समझते हुए अपने कर्तव्य-पथ की ओर चल रहे ? मेरा विचार था कि ऐसी घड़ी में हम अपना पूरा ध्यान अपनी एकता और अपने सामूहिक बल पर देंगे। मगर इसकी जगह हम अपनी शक्तियों को व्यर्थ के अन्तन्तिीय डाह में खो रहे हैं और छोटी- छोटी भाषाओं के आधार पर पृथक-पृथक इकाइयां बनाने की बात सोच रहे हैं। और यह सब कुछ उस समय किया जा रहा है जब कि हमें राष्ट्र की