पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२५

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२०४ भारत की एकता का निर्माण मांग और उसकी जरूरतों की ओर अपना पूरा ध्यान देना चाहिए । इस समय जब कि हम सबको मिल कर एक हो जाना चाहिए था, हम अलग-अलग होने की कोशिश कर रहे हैं और यह भी किसी महत्वपूर्ण विचारों के भेद के कारण नहीं, बल्कि स्वयं नेता बनने की इच्छा के आधार पर । आज तो इस बात की आवश्यकता है कि हम अपनी सारी शक्ति लगा कर ज्यादा-से-ज्यादा औद्योगिक कारखाने खड़े करें। परन्तु उसकी जगह हम बराबर धमकियां देकर और हड़ताले संगठित कर अपनी पैदावार में भारी कमी कर रहे हैं। इस तरह हम अपनी औद्योगिक उन्नति को रोक रहे हैं और देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम अपने गड़े धन को दबाए बैठे हैं जब कि हमारा यह परम कर्तव्य है कि हम उसे राष्ट्र के हित के लिए पैदावार के काम में लगाएँ और बह किसी से पीछे न रह जाएँ। आज हमारा मजदूर वर्ग भी धन पैदा करने से पहले ही उसके बँटवारे पर झगड़ा करने लगा है। इस समय, जब कि हमें ज्यादा-से-ज्यादा बचत करनी चाहिए और अपने साधनों से बड़ी किफायत से काम लेना चाहिए, हम अनावश्यक खर्च कर रहे हैं और अपने आराम और आसाइश की गैर जरूरी चीजों पर, जिनके बिना हमारा काम मज़े में चल सकता है, रुपया गवाँ रहे हैं। साथ ही हम लोगों में नैतिक मूल्यों की अनु- भूति स्पष्ट रूप से कम हो गई है। लड़ाई के समय की जो अनैतिकता फैल गई थी, उसके कारण घूसखोरी और बेईमानी अभी तक जोरों पर है । हम नाग- रिकता के प्रारम्भिक कर्तव्य और जिम्मेवारियाँ भी नहीं जानते । कानून की साख बनाए रखने की बजाय हम अपने रोज के जीवन में उसे तोड़ते हैं। अनु- शासन, ऊँचा चरित्र और शारीरिक तन्दुरुस्ती ये तीनों एक स्वस्थ राष्ट्र के जीवित चिन्ह हैं। आप अपने अन्दर देखिए और बताइए आप में ये तीनों ज़रूरी चीजें कहाँ तक है ? जीवन के किसी भाग को लीजिए, विद्यार्थी, अध्यापक मज़दूर, नौकरी देनेवाले, व्यापारी, सरकारी नौकर, राजनीतिज्ञ चाहे आप कोई भी हों, आप अपने से एक प्रश्न कीजिए कि क्या आप एक स्वस्थ राष्ट्र के नागरिकों की तरह काम कर रहे है ? मुझे विश्वास है कि इसका जवाब पक्की तरह हाँ में बहुत कम जगह मिलेगा। हम सबको शरम के साथ यह मानना पड़ेगा कि हमने जरूरत के समय अपने राष्ट्र का साथ नहीं दिया। मैं आपको यह भी साफ-साफ बता देना चाहता हूँ कि मैं जो यह अन्तरा-