पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२६

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अलाहाबाद युनिवर्सिटी २०५ वलोकन कर रहा हूँ, वह एक निपट निराशावादी या विश्वासहीन व्यक्ति के रूप में नहीं कर रहा । बल्कि यह तो मैं एक पैदायशी आशावादी के रूप में कर रहा हूँ। मुझसे ज्यादा उन गुणों को और कौन जान सकता है, जो हमने, हमारे देश ने, अपनी आज़ादी के पहले ही साल में दिखाए हैं और जिन बातों से हमारी साख बड़ी है । अगर मैं अपने अवगुणों पर जोर दे रहा हूँ, तो वह केवल एक चेतावनी के रूप में दे रहा हूँ, जिससे कि हम गाफिल न हो जाएँ। जिससे हम अपने कौमी पुनर्निर्माण के काम में पक्के इरादे से लग जाएँ। हमारा कर्तव्य है कि आज जब हमारी आजादी का यह शिशु केवल साल भर का है, हम इस बात का पक्का प्रवन्ध करें कि यह बालक बड़ा हो और स्वस्थ, ताकतवान् और हट्टा-कट्टा बने । मैं यह नहीं चाहता कि इसको सब तरफ से बचाकर रखा जाए । इसको तो जीवन संघर्ष के बीच में रह कर ही बढ़ना चाहिए। उसी हवा में पलने से यह तगड़ा होगा। तभी इसमें तेज आएगा । उसी तेज के बल पर यह दुनिया का सामना करेगा। हमें अपनी आज़ादी की बुनियाद मजबूती से और बिलकुल ठीक-ठीक रखनी चाहिए क्योंकि इसी बुनियाद पर हमें एक विशाल भवन बनाना है। एक ऐसा भवन, जो हमारे पूर्वजों से मिली हमारी महान सम्पत्ति के योग्य होगा, जो आजकल के युग का गर्व होगा और जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल विरासत होगा। केवल आजादी की रक्षा करना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि हमें तो यह साबित करना है कि हम इसके योग्य हैं। इस देश में जो छोटे-से-छोटा भी है, हमें उसे भी यह महसूस कराना है कि वह आज़ाद है । खेत में काम करने वाले किसानों, झोंपड़ों में रहने वाले गरीबों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों--सभी को इस योग्य होना चाहिए कि वे गुलामी और आजादी के भेद को समझ सकें । तभी हम यह कह सकेंगे कि हमने आज़ादी ली है और उसके योग्य बन गए हैं। इसलिए हमें अपनी आजादी को संगठित करना है अपनी एकता और शक्ति को बनाना है। पिछले ज़माने में जो हम छड़ गए थे, उस कमी को आज हमें पूरा करना है और इस मुल्क को पहले से बहुत अधिक अच्छा और स्वस्थ बनाना है । यह कर लेने पर ही हम अपने संकुचित उद्देश्यों और क्षुद्र आकां- क्षाओं पर ध्यान दे सकते हैं। लोगों को यह समझना चाहिए कि जिस समय हमने आज़ादी पाई, अगर उस समय हम आज़ाद न हुए होते तो हमें कैसे-कैसे