पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२७

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२०६ भारत की एकता का निर्माण संकटों का सामना करना पड़ता। हम लोग उन परिस्थितियों को भी जानते हैं, जिनसे भारी तबाही हो सकती थी और जिनका हमने पिछले वर्ष में सफ- लता से मुकाबला किया है। यह सब कुछ इसी कारण सम्भव हुआ कि राष्ट्र का हृदय सच्चा है, और हमारी सच्ची अन्तर्भावनाएँ और हमारी श्रद्धा शुरू के इन झगड़ों को सफलतापूर्वक सम्हाल सकती थी। अगर हमने उन बुरी प्रवृत्तियों को, जो अब दिखाई दे रही हैं और जिनकी चर्चा मैंने अभी-अभी की है, बढ़ने दिया तो इससे बहुत से खतरे पैदा हो जाएँगे। हम लोग मुसीबतों में फंस जाएंगे और दल-दल में धंसते चले जाएंगे। वैसा हुआ तो हम अपनी आज़ादी का गला, उसके पैदा होने के लगभग तुरन्त बाद ही घोंट देंगे। हिन्द का इतिहास हमें बताता है कि हमने अपनी आज़ादी उन संकुचित उद्देश्यों और स्वार्थपूर्ण आकांक्षाओं के बदले में दे डाली थी, जिन्होंने हमारे बड़े उद्देश्यों और राष्ट्रीय अभिलाषाओं को ढक लिया था। राष्ट्रीय संकट के उस युग में जब हर एक का यह कर्तव्य था कि वह देश की रक्षा में अपना कन्धा लगाए, हमारे देश के कई भागों में फूट पड़ गई और वह अलग-अलग दलों में बँट गया । व्यक्तिगत आकांक्षाओं ने हमें राष्ट्रीय हितों की ओर से अन्धा कर दिया और आपसी नफ़रत ने एकता और अनुशासन की सारी भावनाओं को नष्ट कर दिया। आज हमें यह समझ लेना चाहिए कि किसी कौम के लिए अपने इतिहास के पाठ को भूल जाना खतरे से खाली नहीं होता। मैं आपसे और आपके ज़रिए मुल्क भर से यह अपील करता हूँ कि हमें अपनी शक्ति को किफायत से बरतना चाहिए। हमें अपने सीमित बल का संचय करना चाहिए, जिससे कि हम उन संकटों का मुकाबला कर सकें, जिनसे हमारे कौमी अस्तित्व को भी खतरा है। अपने राष्ट्र को सच्चे और स्वस्थ ढंग पर बढ़ाना हमारा कर्तव्य है । जो राष्ट्रीय एकता हमने इतनी कठिनाई से प्राप्त की है, पहले उसे हम संगठित और एकरूप तो कर लें, उसके बाद हम और विभिन्नताओं की बात करें। हम उन्हीं बातों पर ध्यान दें, जिनसे कि एकता पैदा होती है, न कि उन पर जो हमें अलग-अलग करती हैं। हालत ऐसी है और समस्याएँ इतनी विशाल और पेचीदा हैं कि जो कुछ हमने कर लिया है, उसी पर सन्तोष करके हम बैठ नहीं सकते । आज़ादी के पहले वर्ष में हमने जो कुछ करने की कोशिश की है--विदेशों में दूतावास, लीगेशन, कांस्युलेट आदि स्थापित करना, विदेशी मामलों में हमारा भाग लेना, रियासतों को समस्त राष्ट्र का अंग