पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२२८

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अलाहाबाद युनिवर्सिटी २०७ बनाना और उनको प्रजातान्त्रिक रूप देना, शासन और रक्षा की सविसों का पुननिर्माण, अपनी आन्तरिक सुरक्षा को मजबूत बनाना, उन्नति की अनेक योज- नाओं को तैयार करना और उन पर अमल करना, शरणार्थियों को लाना, और उनको फिर से बसाना--यह सब असल में उन बड़े कामों की शुरुआत हैं, जिनको अभी अपने हाथ में लेना है। कोई भी विदेशी नीति, चाहे वह कितनी भी अच्छी तरह सोची हुई क्यों न हो, विदेशों में हमारी कोई संस्था, चाहे वह कितनी भी कुशल क्यों न हो, कोई विशेष असर नहीं डाल सकती, जब तक कि उसके पीछे एक ठोस शक्ति न हो । आज की अन्तर्राष्ट्रीय सभाओं में किसी मामले की बिजय केवल इसी कारण नहीं होती है, कि वह सच्चा है और उसमें नैतिक बल है । किसी सच्चे और बलवान मामले को भी उसे प्रस्तुत करनेवाले देश की शक्ति और साख का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। विदेशी मामलों में हिन्द को एक काफ़ी बड़े क्षेत्र में अनेक अवसर प्राप्त है। एशिया में उसका सब से ऊँचा स्थान है और आज की परिस्थितियों में इस विशाल महाद्वीप में अकेला यही देश अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को स्थिर करनेवाला बन सकता है । इस प्रदेश में हिन्द को पर्याप्त और उचित मात्रा में काम करना चाहिए। हमारी बचाव की सेनाएँ पूरी तरह कुशल हैं। वे असरदार ढंग से काम कर सकें, इसके लिए उनके पीछे एक महान औद्योगिक प्रयत्न होना जरूरी है। अगर हमको बचाव के ज़रूरी सामान के लिए विदेशों के आसरे रहना पड़ा, तो हमारे अस्तित्व के लिए भी संकट पैदा हो जाएगा। संसार की वर्तमान आर्थिक व्यवस्था में हमें विदेशी मुद्रा को किफायत से काम में लाना चाहिए। हमें विदेशों से आए हुए माल पर बहुत कम निर्भर रहना चाहिए । और अपनी जरूरी चीजें, जहाँ तक सम्भव हो, खुद पैदा कर लेनी चाहिए । आज हमें जहाज भी बनाने हैं, जो हमारा माल विदेशों में ले जाएँगे और जरूरी सामान इधर लाएँगे। हमारा समुद्रतट बहुत लम्बा होने के कारण हमारे अस्तित्व के लिए एक मजबूत समुद्री फौज़ और एक तिजारती बेड़ा होना भी जरूरी है। अगर हमें अपने गों का पेट भरना है, तो अपने यहाँ अधिक अनाज पैदा करना चाहिये । अगर हमें अपने सब लोगों को उनकी कम-से-कम जरूरत के लायक कपड़ा भी पहनाना है, तो अब की अपेक्षा हमें कहीं अधिक कपड़ा बनाना होगा। पानी से बिजली निकालने का भी एक विशाल