पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२३२

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अलाहाबाद युनिवर्सिटी कर लो । उन लोगों के बहकाने में मत आओ, जिनकी विध्वंस वृत्ति, उस पेड़ की जड़ तक काट डालने में संकोच नहीं करती, जो उन्हें छाया और आश्रय देता है। आपको धोखे में आकर किसी नयी विचारधारा को नहीं अपनाना चाहिए। जब तक कि आपका निश्चित मत न हो जाए तब तक किसी नई विचार- धारा के अनुसार आपको आचरण नहीं करना चाहिए । और आज तो आपके सामने एक ही मापदण्ड होना चाहिए, वह यह है कि जो कुछ आप कर रहे हैं उससे राष्ट्र की समस्याओं को सुलझाने में कोई रचनात्मक मदद मिलेगी या नहीं । अधसोचे हल पहले-पहल किसी को भले ही आकर्षक लगें, पर अन्त में उनसे हानि और विनाश ही होता है । आज हमारे पास तजर्वे करने के लिए भी समय नहीं है । जितना समय हमारे पास है, वह सब-का-सब हमें अपनी आर्थिक व्यवस्था ठीक करने में, अपने साधनों को बढ़ाने के काम में लगाना है, ताकि उन लोगों की बढ़ती हुई माँगें पूरी की जा सकें, जो काफी समय से बेहद गरीबी की हालत में पड़े हुए हैं। आपको पूरी ज़िम्मेदारी और विवेक की भावना से काम करना है। मेरा कथन है कि जीवन का निचोड़ अनुशासन है। अनुशासन के बिना मनुष्य समाज या राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकते, अनुशासन आपकी जमातों में और खेल के मैदानों में भी उतना ही जरूरी है, जितना वह आपके भावी व्यवसाय में है। देश को इस समय सधै हुए और अनुशासन की शिक्षा प्राप्त युवकों की जरूरत है न कि गैर जिम्मेदार उत्पात मचानेवालों की। इस तरह आपके पास दृष्टि भी होनी चाहिए और आदर्श भी। जब तक कि आपके सामने अपनी मातृ- भूमि के भविष्य का यह गौरवमय दृश्य और उसकी महानता और उसके भाग्य की एक आदर्श कल्पना नहीं है, तब तक आप अपने वर्तमान कर्तव्यों और जिम्मे- दारियों को सच्चे रूप में नहीं समझ सकते । पर आपको यह अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि अपने जीवन में कुछ कर सकने के लिए आपको अपने पैर हमेशा मज- बूती से पृथ्वी पर जमाए रखने चाहिए । केवल दृष्टि और आदर्शवाद से कुछ न होगा । आपको इन्हें ठोस कार्य के रूप में बदलना होगा और अपने उद्देश्यों को वास्तविकता के कठोर क्षेत्र में पाना होगा। आपको यह याद रखना चाहिए कि अपनी उच्च आकांक्षाओं को अन्य आकांक्षाओं द्वारा ही परास्त कर देना एक बड़ी दर्दनाक घटना है । आप को उस धातु का बनना चाहिए, जो पूर्व निर्धा- रित भाग्य को चुनौती देकर आपत्तियों पर हँस सकती है। सबसे पहले मातृ-