पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२४६

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फतह मैदान, हैदराबाद २२३ है। हिन्दुस्तान के जिगर में, हिन्द के पेट में, यदि ट्यूमर ( पेट का फोड़ा ) पड़ा है, तो हिन्दुस्तान तन्दुरुस्त नहीं रह सकता । तो जो पुरानी हुकूमत यहां थी, वह तो हट गई । परन्तु उसी से हमारा रोग चला गया, या ट्यूमर मिट गया, ऐसा नहीं हो सकता। जब तक आप लोग स्वच्छ न हो जाएँ, आप लोग सावधान न हो जायें और आप लोग आपस में मिल न जाएँ, तब तक इस रोग का इलाज नहीं होगा। तो हमारी रियासत में जितने लोग हैं, उनको पिछली बातें भूल जानी चाहिए। हिन्दू हों, मुसलमान हों, हरिजन हों, किसी भी कौम के लोग हों, सबको आपस में एक दूसरे का भय निकाल देना है और एक दूसरे के साथ अविश्वास को निकाल देना है। सबको यह समझना चाहिए कि वह पुरानी रात चली गई है, और अब नई सुबह आई है । प्रातः काल के बाद पिछली रात के दुःस्वप्न को हमें याद नहीं करना चाहिए । जिन लोगों को इधर रहना है, उन सबको एक हो जाना चाहिए। जिसमें एक होने की शक्ति न हो, उनको मैं अभी से सलाह देता हूँ कि वे जल्दी-से-जल्दी हैदराबाद को छोड़कर चले जाएँ। मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूँ कि रियासत में जो भी सरकार बनेगी, वह लोकमत से बनेगी। हमें सबको मौका देना है। लेकिन जिनकी यहाँ महान ताकत है और बड़ी जमात है, उनको यहाँ बड़ा हिस्सा मिलने ही वाला है। उसको कोई रोक नहीं सकता । क्योंकि डेमोक्रेसी (प्रजातन्त्र) की यह नीति है कि जो मेजोरिटी ( बहुमत ) है, उनको ज्यादा हिस्सा मिलता ही है। लेकिन यहाँ जो माइनोरिटी (अल्पमत) है, उसके दिल में भी यह विश्वास पैदा हो जाना चाहिए कि यदि हम हैदराबाद के प्रति वफादार रहेंगे, तो हमें कोई खतरा नहीं है । उनको भी मौका मिलेगा, जैसे सब को मिलता है। जिस प्रकार की डेमोक्रेसी सारे हिन्दुस्तान में है, उसी प्रकार की डेमोक्रेसी हैदराबाद में भी होगी। तो आप जल्दी से अपना उत्तरदायित्व सम्भालने की तैयारी करें। पिछले डेढ़-दो सालों में जो काम यहाँ किया गया, वह सब उल्टा हुआ और उससे बहुत नुकसान हुआ । उसने हैदराबाद की हालत बिगाड़ दी। इतना ही नहीं, बल्कि हैदराबाद में कोई काम ही नहीं होने दिया। यहाँ ऐसे लोग हुकूमत कर रहे थे, जो एक तरफ हमारे साथ समझौता कर रहे थे और दूसरी तरफ़ पाकिस्तान को लोन ( कर्ज) देने की कोशिश कर रहे थे। क्या में भी उन चीजों को याद करना नहीं चाहता? मुझे ऐसी चीज़ की याद करने से दुख होता है।