पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२० भारत की एकता का निर्माण कल आपका टर्न भी आएगा। दुष्ट यही है कि इस तरह देश का काम नहीं चलेगा। जब आप जैसे कुछ लोग कहते हैं कि भाई, यह तो वही करते हैं, जो पुरानी गवर्नमेंट करती थी, तो यह सच्ची बात नहीं है। क्योंकि हम आपके प्रतिनिधि हैं और जिस चीज का उपयोग हमारे लोग हमें जहाँ तक करने दें, वहीं तक हम उसका उपयोग कर सकते हैं। लेकिन पुरानी गवर्नमेंट तो लोगों को जानती ही नहीं थी। लोग तो उनके पास जा भी नहीं सकते थे। इधर आज की सरकार में हमारे देश के लोगों को जितनी सत्ता चाहिए, उतनी देने में हमें कोई झिझक नहीं है। हम डेमोक्रेटिक रूल ( प्रजातन्त्र शासन ) को पसन्द करते हैं और डेमो- क्रसी का काम ही हमने लिया है । लेकिन हिन्दुस्तान में डेमोक्रेसी का असली जन्म तो अभी अभी हुआ है। अभी तक पुराना सिलसिला चलता आया पिछले दो सौ साल तो आटोक्रेसी ( निरंकुश राज्य ) चलती थी, उसके बाद पोलिटिशियन्स ( राजनीतिज्ञों) के कारण जो फिसाद हुए, उस चीज में से हम मुश्किल से निकले। तब आपको यह समझना चाहिए कि जहाँ हम लोगों के हाथ में सत्ता है, वहाँ अगर उसका दुरुपयोग न हो, तो आपको जरा खामोश रहना चाहिए। दूसरी बात में यह कहना चाहता हूँ कि कलकत्ता हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा शहर है। कलकत्ता हमारे नये इतिहास में एक बड़ा पार्ट (हिस्सा) अदा करता रहा है। हिन्दोस्तान की लीडरशिप भी बहुत दिनों तक इधर ही थी। मैं चाहता हूँ कि आज भी वैसा ही हो। लेकिन आज कलकत्ता गलत रास्ते पर चलता जाता है । कलकत्ता में जिस प्रकार की डिसिप्लिन (नियन्त्रण), जिस प्रकार की तालीम होनी चाहिए, वह नहीं है। हमको हमेशा डर रहता है कि कलकत्ते में कोई फिसाद तो नहीं हो गया । एक चीज देख कर हम को खुशी भी हुई। वह यह कि जब पंजाब में इतना बड़ा तुफान उठ खड़ा हुआ था, तब भी कलकत्ता शान्त हो गया और खामोशी पकड़ कर बैठ गया। यदि यह बिगड़ता तो बहुत बिगड़ जाता। लेकिन उस समय गान्धी जी यहाँ ही थे और यह ईश्वर की कृपा थी कि हम बिगाड़ से बच गए । नहीं तो हमारे पास कोई सामान नहीं था। अगर कलकत्ता बिगड़ा होता, तो सारा हिन्दुस्तान बिगड़ जाता।