पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२५४

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(१८) उस्मानिया युनिवर्सिटी में २१ फरवरी, १९४९ उस्मानिया विद्यालय के कुलपति, कुलनायक, सम्यगण, विद्यार्थी भाइयो और बहनो, आप लोगों ने मुझ पर जो इतनी इज्जत बख्शी, उसके लिए मैं आप का शुक्रिया अदा करता हूँ। चन्द दिनों पहले जब आपके विश्वविद्यालय के कुल- नायक मुझे निमन्त्रित करने मेरे पास दिल्ली में आए और पदवीदान की बात मेरे सामने रखी, तो मैं झिझकने लगा। क्योंकि मैं नहीं समझता हूँ कि विश्वविद्यालय की किसी पदवी के लिए मुझ में कोई योग्यता है । मैंने तो दुनिया के खुले विद्यालय की शिक्षा पाई है, और अनुभव से दुनिया का कुछ. न कुछ रंग-ढंग देख लिया है । लेकिन जब मैं यह आलीशान महल देखता हूँ, और इनमें जो खूबियाँ भरी हैं, अपनी कल्पनाशक्ति से जब मैं उनका ख्याल करता हूँ, तब मैं डरता हूँ कि क्या सचमुच इस विद्यालय की डिग्री लेने की मेरी योग्यता है ? ( हंसी) में जो कहता हूँ यह हँसी मजाक की बात नहीं है। मैं सही बात कहता हूँ। इसमें सारे भारतवर्ष के पुराने से लेकर आजतक के जो कल्चर (संस्कृति) थे, उन सबको जिस तरह मिलाया गया है, वह एक बहुत बड़ी खूबी है। उसी खूबी को यदि हमने समझ लिया होता और हमारे जो अलग-अलग कल्चर