पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६

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कलकत्ता २१ सवाल यह है कि अब हमें क्या करना चाहिए । अभी तक हमारे सामने कितनी ही मुसीबतें हैं। अभी तक हमारे सामने ऐसी हालत है कि सिन्ध में १० लाख आदमी हिन्दू और सिक्ख पड़े हैं, जिनको हमें वहाँ से निकालना है। क्योंकि वहाँ से जो चिट्ठियां आती हैं, उनमें सब लोग कहते हैं कि भई, हम वहाँ नहीं रह सकते । कितना भी हमको विश्वास दिलाया जाए, कितनी भी बातें कही जाएँ कि हम मैनोरिटी ( अल्पमत) को ठीक प्रोटेक्शन (संरक्षण) देनेवाले हैं, ठीक हक देनेवाले हैं, पर किसी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इधर हमारे यहाँ तो तीन-चार करोड़ मुसलमान पड़े हैं, उधर कोई हिन्दू या सिक्ख रहनेवाले न हों, तो किस तरह काम चल सकता है ? कुछ लोग कहते हैं कि जो लोग चले आए हैं, वे पीछे लौट जाएँ, तो अच्छा है। कौन कहता है पीछे जाने के लिए? कौन उन्हें विश्वास दिला सकता है पीछे जाने से उनका जान-माल सुरक्षित रहेगा? वैसा करना हो तो सारा सामान बदलना पड़ेगा। और उसके लिए सबसे पहले दिल साफ करना पड़ेगा। क्योंकि वहाँ एक गवर्नर से लेकर चपरासी तक, जितने भी सरकारी नौकर हैं, उनमें एक भी हिन्दू या सिख नहीं रहा है। इन हालतों में हिन्दू और सिख वहाँ किस तरह से रहेंगे? वे न वहाँ फौज में हैं और न पुलिस में हो। वहाँ के हाई कोर्ट में भी वे नहीं हैं। ऐसी जगह पर अगर आप कहो कि हिन्दू और सिख वापस चले जाएँ तो कौन बहाँ जाएगा? ऐसी जगह पर कोई हिन्दू या सिक्ख कैसे रह सकेगा? उबर जो ऐसी बातें कहते हैं कि, वहाँ पीछे लौट आए तो ठीक है, वह खाली बातें ही बातें हैं। वह भी सिर्फ दुनिया को बताने की बात है । यदि सफाई से बात करनी हो तो हमारे साथ बैठ कर फैसला करना चाहिए । हम तो आज यह बात करने के लिए तैयार हैं कि झगड़ा करने की क्या जरूरत है ? हिन्दू और सिक्ख वहाँ नहीं रहना चाहते, उनको जबरदस्ती रखने की कोशिश न करो। वे इधर आना चाहते हैं तो उन्हें आने दो। हम को उन्हें इधर ले आने दो । क्यों नहीं ले आने देते? जबरदस्ती करके उन्हें वहाँ रखने से फायदा क्या है ? और इस तरह वे रह भी कैसे सकते है ? तो अभी तक हर एक चीज़ में झगड़े का बीज बाकी है। काश्मीर में जो कुछ चल रहा है, उसे तो आप जानते ही हैं। कल मैं इधर आया, और आज अखबार में मैंने जफरुल्ला साहब का एक लम्बा-चौड़ा बयान देखा, जिसमें उन्होंने