पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६०

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मैसूर म्युनिसिपैलिटी के अभिनन्दन में २३७ तब से हमको एक प्रकार का नोटिस मिल गया कि हमें सावधान रहने की कितनी जरूरत है । इसके बाद का इतिहास आप जानते ही हैं। आप के पड़ोस में ही जो एक बहुत बड़ी रियासत, देश की सबसे बड़ी रियासत है, उसने क्या किया, वह भी आप जानते हैं। उस सबका इतिहास बताने की मुझे कोई जरूरत नहीं है। लेकिन यदि उस समय पर हिन्दुस्तान की और रियासतों ने भी यही सोच लिया होता कि हमें भी हिन्दुस्तान से अलग अपना अड्डा बनाना है, तो उससे हमको बहुत नुकसान होता। हमारी उन्नति रुक जाती। बहुत दिनों से आप लोग अपना राजतन्त्र लेने की कोशिश कर रहे थे। हम और आप उसके लिए एक साथ लड़ाई कर रहे थे। और, जैसा कि आपने कहा, एक समय पर मैं आप लोगों के नेतागणों को मिलने के लिए बैंगलोर के जेल में आया भी था। उस समय में और आज के समय में बहुत फर्क आ गया है मैसूर के महाराजा ने समय की माँग को समझ कर अपनी सत्ता जनता के प्रतिनिधियों को दे दी, और हिन्दुस्तान में मिल जाने की स्वीकृति दे दी। यह बहुत अच्छा हुआ कि एक भी राज्य ऐसा न रहा, जो हमारे साथ मिल नहीं गया। सब आ गए, जो नहीं आए, उनका भी हिसाब पूरा हो गया। अब कोई चीज़ बाकी नहीं रही । हिन्दुस्तान में एक प्रकार से शान्ति स्थापित हो गई है। लेकिन हिन्दुस्तान में आज भी जो तकलीफ़ है, उस तकलीफ का अगर हम ख्याल न रखें, तो हमको जो स्वराज मिला, वह स्वराज गान्धी जी की इच्छा का स्वराज नहीं होगा। हिन्दुस्तान के बदन पर हड्डी और चमड़ी के सिवा कोई चीज़ बाकी नहीं रही । तो यदि भारत को मजबूत बनाना हो और सच्चा स्वराज हमें पैदा करना हो, तो गान्धी जी ने जो रास्ता हमें बताया था, शुरू से वही रास्ता हमें पकड़ना होगा । हमने जब हिन्दुस्तान में स्वतन्त्रता के लिए युद्ध शुरू किया, आन्दोलन शुरू किया, तब वह दो तरीकों से किया। एक तो परदेशी सल्तनत को इधर से हटाना । उसे हटाने के लिए गान्धीजी के पास एक अद्भुत शस्त्र था, असह्योग और सत्याग्रह । उन्होंने सत्य और अहिंसा द्वारा विदेशी सत्ता को इधर से हटाने के लिए तपस्या शुरू की। उसमें हम लोगों ने भी थोड़ा- बहुत उनका साथ दिया । लेकिन कोई सच्चा साथ दिया, ऐसा किसी को नहीं मानना चाहिए। यदि कोई समझे कि उसकी कुर्बानी से आजादी मिल