पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६१

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4 २३८ भारत की एकता का निर्माण गई है, तो वह बेवकूफी की बात होगी। एक महान व्यक्ति की तपस्या से ही परदेसी सल्तनत यहाँ से हट गई । लेकिन शुरू ही से उन्होंने कहा था कि यदि हमें सच्चा स्वराज चाहिए, जिसको वह रामराज्य भी कहते थे, तो वह राम- राज्य हमको तब मिलेगा, जब हम खुद ही इस प्रकार का राज बनाएँ । और वैसा राज्य बनाने के लिए उन्होंने एक प्रोग्राम भी रखा था। एक तो यह । मुल्क में अनेक प्रकार के मजहब के लोग हैं, हिन्दू, मुसलमान, पारसी, क्रिश्चियन, सिख आदि । जितने मजहब के लोग हिन्दुस्तान में रहते हैं, उतने और किसी जगह पर नहीं होंगे। तो हम सब लोगों को मिलजुल कर रहना चाहिए, प्रेम से रहना चाहिए। हमें आपस में लड़ना नहीं चाहिए। मजहब को पालि- टिक्स ( राजनीति ) से और राष्ट्रीय क्षेत्र से कोई मतलब नहीं है। अपना- अपना धर्म पालन करना प्रत्येक की व्यक्तिगत इच्छा की बात है। उसमें राज्य कोई दखल नहीं दे सकता, न और किसी को दखल देना चाहिए। लेकिन पराई हूकूमत ने इस देश में अपना राज्य सुभीते से चलाने के लिए धर्म को या मजहब को पालिटिक्स में डाल दिया। इससे कौम-कौम के बीच में अन्तर बढ़ गया और इसका नतीजा यह हुआ कि आखिर हमारे मुल्क के दो हिस्से करने पड़े। लेकिन जब गान्धी जी ने आन्दोलन शुरू किया था, तभी से कहा था कि सच्चा स्वराज तो हमको तभी मिलेगा, जब हम दोनों कौमें, बल्कि देश की सब कौमें, आपस में मिल जाएँगी और दिल-से-दिल मिला लेंगी। उनकी यह इच्छा पूरी हुई नहीं। इससे जिस प्रकार का स्वराज हम चाहते थे और वह चाहते थे, उस प्रकार का स्वराज हमें नहीं मिला। दूसरा गान्धी जी ने शुरू ही से कहा था कि यदि हिन्दुस्तान को सच्ची स्वतन्त्रता चाहिए, तो हमारे मुल्क में अस्पृश्यता जैसी चीज़ बाकी नहीं रहनी चाहिए। देश भर में कोई अछूत नहीं होना चाहिए । ऊँच-नीच का भेद भाव नहीं होना चाहिए। कौम-कौम के बीच जिस प्रकार के छोटे-मोटे बाड़े बने हैं, वह नहीं रहना चाहिए। हमारे मुल्क में यह जो बहुत बड़ा ऐंब है, इसको निकाल देना चाहिए । परन्तु आज भी बह चीज़ गई नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि गुलामी की जड़ हमारे इतना भीतर चली गई है कि उसके मूल उसमें से निकलते ही नहीं । तो यदि हमें सच्चा स्वराज चाहिए, तो हमें गान्धीजी की बताई हुई समाज-रचना करनी पड़ेगी। इसलिए में पुकार-पुकार कर सब जगह कह रहा हूँ कि आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं। हम सबको मिलकर, जैसे