पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६२

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मैसूर म्युनिसिपैलिटी के अभिनन्दन में २.३४ हम पहले स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए काम कर रहे थे, उसे भी ज्यादा काम करने की जरूरत है । नहीं तो हमारा काम नहीं चलेगा । देश में गान्धी जी के स्वप्न का रामराज्य स्थापित नहीं होगा । अब मैसूर राज्य आजाद है, लेकिन यदि मध्यस्थ सरकार से आप लोगों को पूरा अनाज नहीं मिलेगा, तो आपको बड़ी मुसीबत का सामना करना होगा। क्योंकि आपको जितना खाना चाहिए, उतना इधर पैदा नहीं होता। इसका नाम स्वराज नहीं है । वह तो हमें दूसरों पर अवलम्बित रहना पड़ रहा है। तो हमारे मैसूर स्टेट में जितनी खुराक चाहिए, उतनी यहीं पैदा होना चाहिए, जितना कपड़ा हमारे लिए चाहिए, उतना यहां ही पैदा होना चाहिए । गांधी जी ने तो बार-बार यही बात कही और मरते दम तक वह अपना चरखा कातते रहे। उनके मरने से पहले, आखिरी समय पर, मैं ही उनसे मिला था। उस वख्त भी वह चरखा चला रहे थे, और मुझ से बातचीत करते जाते थे। अब वह दृश्य मेरे सामने रोज़ खड़ा होता है । तो सारे हिन्दुस्तान में घूम-घूम कर उन्होंने कहा कि अपना कपड़ा खुद बनाओ । लेकिन हमने यह काम नहीं किया। आज तो दुनिया की ऐसी हालत हो गई है कि हम बनाना चाहें, तो भी मुश्किल पड़ेगा। क्योंकि अब मिलबाले भी कहते हैं कि हमारे मुल्क में जितनी रुई चाहिए, उतनी यहाँ पैदा नहीं होती। बाहर से भी उतनी रुई नहीं आती। हर मुल्क को आज यही शिकायत है । अब हमारे मुल्क का टुकड़ा हुआ। पाकिस्तान से बहुत रुई आती थी, अब वह नहीं आती। और वह जिस से ज्यादा पैसा मिल जाएगा , उसी को बेच डालेगा। तो हमें अनाज भी चाहिए और कपड़ा भी चाहिए । दोनों के लिए हमारे मुल्क को स्वतन्त्र होना चाहिए । उसके लिए जितनी कोशिश हमें करनी चाहिए, उतनी हम न करें, तो इस आजादी से हमें क्या लाभ होगा? इस स्वतन्त्रता को हम क्या करेंगे ? जिस प्रकार हम आज चल रहे हैं, इसी तरह से आगे भी चलते रहेंगे, तो कुछ दिनों के बाद लोग कहने लगेंगें कि इस से तो अंग्रेजों का राज अच्छा था। तब कम-से- कम खाना तो मिलता था। में यह बात जो हर जगह पर बार बार कह रहा हूँ, उसका मतलब यह है कि हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। साथ ही हमें घबराने की भी जरूरत नहीं है । क्योंकि हमारे मुल्क में जगह की भी कमी नहीं है और हमारी धरती के भीतर में धन भी बहुत गड़ा है। यदि आज हम समझ जाएँ, तो जितना चाहिए