पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६४

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मैसूर म्युनिसिपैलिटी के अभिनन्दन में २४१ प्रान्त में, जिस जगह पर जो अनाज ज्यादा पकता है, उसे अपनी जिम्मेवारी और समझ से बचा कर दूसरे प्रान्त में, जहाँ वह अनाज कम है, देने के लिए गवर्नमेंट को दे देना चाहिए । तीसरा हमारे मुल्क में जिस किसी जगह पर, जहां हम पहुँच सकें या कुछ भी खाद्य पैदा कर सकें, वहां उसे ज़रूर पैदा करना चाहिए । फल, साग, सब्जी, तरकारी, यहां तक कि अनाज भी हम अपने कम्पा- उण्ड ( चारदीवारी ) में पैदा कर सकते हैं, अपने स्टेट में पैदा कर सकते हैं। जहाँ भी कोई खाली जगह पड़ी हो, वहां हमें ये चीजें ज़रूर पैदा करनी चाहिए । तभी हमारा काम चल सकता है। हमारे मुल्क में अनाज पैदा करने के लिए और इरिगेशन (सिंचाई) के लिए बहुत-सी बड़ी-बड़ी स्कीमें हैं। वह तो जब होंगी, तब होंगी। लेकिन पांच- सात साल में वे पूरी न हुई तो इस पांच-सात साल के बीच यह जो गढ़ा पड़ जाएगा, उसे हम किसी भी दिन भर नहीं सकेंगे। इसलिए हमें यह सब करना है। गान्धी जी ने जो कहा था कि इस रास्ते पर चलते-चलते हम आपस में झगड़ा कम करें, तो उससे पुलिस का और आर्मी (फौज़) का खर्च भी कम होगा। साथ ही अगर हम गरीबों और अछूतों से सहानुभूति बता कर उनका साथ दें, और उनके साथ कपड़ा बुनने का काम भी कर सकें, तो उससे देश का कल्याण ही होगा। इस प्रकार के रचनात्मक काम में न लगकर अगर हम सब लोग सिर्फ गवर्नमेंट से ही उम्मीद करेंगे और गवर्नमेंट की शिकायत करते रहेंगे कि उसने यह नहीं किया, वह नहीं किया, तो उससे काम नहीं चलेगा। यह सब चीजें हमारे करने की हैं। इसलिए मानपत्र में आपने जो लिखा है कि पीछे हमने जो कुछ किया, वही बार बार करते रहेंगे, या आपने यह किया, बह किया, इस सब चीज़ को मैं नहीं मानता। क्योंकि पीछे जो किया, वह उस समय पर ठीक था, लेकिन आज वह काम की चीज़ नहीं है। आने तो करने का बहुत काम बाकी पड़ा है। और हमारी पिछली कार्रवाई से हमारा काम नहीं चलेगा। हमें आमें ज्यादा कमाई करनी चाहिए । इसलिए आपने जो पिछले कामों के बारे में जिक्र किया कि मैंने यह किया, वह किया, उसका अधिक महत्व नहीं है। मैं जानता हूँ कि तब मेरे साथ गान्धी जी का आशी- र्वाद था और तब उनकी सलाह भी मुझे मिलती थी। उससे मैं जो काम करता था, वह सब काम ठीक हो जाता था। लेकिन उसके बाद जिस प्रकार का भा०१६