पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६९

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(२०) पञ्जाब युनिवर्सिटी की ओर से डाक्टरेट मिलने पर अम्बाला, ५ मार्च, १९४९ सज्जनो! आप लोगों की तरफ से जब मुझे पदवीदान का निमन्त्रण मिला तो मैं सोचता रहा कि मुझे क्या करना चाहिए। क्योंकि जिन लोगों को आज पदवी- दान देना है, उनमें बहुत से ऐसे हैं, जिन्होंने पदवी पाने के लिए बड़ी मेहनत की है, यह उनका हक है । मैं उन्हें मुबारकबाद देता हूँ। लेकिन तीन आदमियों को आपने शोभा की पदवी देने के लिए चुना है। उनमें से दो ऐसे हैं, जिन्होंने आपके प्रान्त की मुसीबत की हालत में बहुत सेवा की। इनमें से एक ने पहले भी सेवा की थी। दूसरे, जो आपके कुलपति (चांसलर ) हैं, उनका भी अधिकार है । उन्हें डिंगरी क्यों न मिलें ? (तालियाँ) लेकिन इस जगह पर यह पदवी प्राप्त करने की कोई योग्यता मुझ में नहीं है। इसलिए मैं दुविधा में था कि मुझे क्या करना चाहिए । दूसरी ओर मुझे ख्याल आया कि मुझे घायल पंजाब से निमन्त्रण मिला है और मेरा धर्म है कि में उसको स्वीकार करूं । (तालियाँ) इसलिए मैंने स्वीकार कर लिया। आपकी यूनिवर्सिटी का अभी प्रारम्भ ही हुआ है, प्रारम्भ ही में आपने मुझे