पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२७९

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संस्कृति के अनु- २५६ भारत की एकता का निर्माण था कि हमें जिस शुभ अवसर पर यह कार्य करना है, उसमें कोई फर्क न पड़े। ईश्वर का आशीर्वाद हमारे ऊपर है। इसलिए हम अकस्मात बिल्कुल सुरक्षित निकल आए और हम एक तरह से मृत्यु के दर्शन कर वापस लौट आए। वाकई हमको चिन्ता बहुत हुई कि आप लोगों के दिलों में क्या कष्ट होगा और सारे हिन्दुस्तान में भी लोगों के दिलों में परेशानी होगी। क्योंकि हम दो-तीन घंटे के लिए दुनिया से कट गए थे। लेकिन ईश्वर ने हम पर इतनी कृपा की कि समय पर हमको इधर भेज दिया। तो आज के शुभ अवसर पर सब से पहले हमें ईश्वर को याद करना है कि इस महान् प्रसंग पर हमें अपनी जवाबदारी समझने और उसको अदा करने के लिए ईश्वर हमें शक्ति दे । इस प्रसंग पर जयपुर महाराजा साहब को जो राजप्रमुख का मान दिया गया है, उसके लिए मैं उनको मुबारकबाद देना चाहता हूँ। आज तक तो यह जयपुर के सेवक थे । क्योंकि असल में हमारे हिन्दुस्तान सार राजा राज्य का प्रधान तो ज़रूर है, लेकिन उससे भी ज्यादा वह प्रजा का सेवक है । तो आज तक यह जयपुर की प्रजा के सेवक थे, आज से यह सम्पूर्ण राजस्थान की प्रजा के सेवक बनते हैं। हमारे महाराज प्रमुख (महाराणा उदय- पुर ) आज हाजिर नहीं है क्योंकि उनकी शारीरिक दशा हम जानते हैं। पर उनको हम कभी भूल नहीं सकते । राणा प्रताप ने राजपूताना को एक बनाने के लिए जिन्दगी भर कोशिश की। राजपूताना का एकीकरण करने के लिए जितना कार्य और जितनी कोशिश राणा प्रताप ने की, उतनी और किसी ने नहीं की। उनका संकल्प परिपूर्ण करने का सौभाग्य आज हम लोगों को प्राप्त हुआ है, इसलिए आज हमारे अभिमान का दिवस है । इसके लिए हम महाराज- प्रमुख साहिब को भी मुबारकबाद देते हैं। हम उम्मीद करते है कि जो संकल्प महाराणा प्रताप के मुरब्बियों ने किया था, और जिस मतलब से वह किया गया था, उसे हम परिपूर्ण करेंगे और उसके लिए हम योग्यता प्राप्त करेंगे। इसके लिए हम अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मांगते हैं और ईश्वर का भी आशी- दि मांगते हैं। जिन सब महाराजाओं ने इस काम में साथ दिया और समय को पहचान कर जो त्याग किया, उसके लिए मैं उनको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैंने जो यह रियासतों के सम्बन्ध में कुछ कार्य किया है, उसके लिए मेरी तारीफ की जाती है । मगर असल में तो इसके लिए हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं की