पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२९०

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संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन करते हुए २६५ है कि प्रजा अपना दरवाज़ा खुला रखे और गरीब अपनी झोंपड़ी को अपना किला समझ ले । उसको भी पुलिस की जरूरत नहीं पड़े। इस प्रकार की हवा हम पैदा करें, तब हम राजपूताना को उठा सकते हैं और तब हम अपना कर्तव्य पूरा कर सकते हैं। कांग्रेस में काम करने वाले जो लोग हैं, जिन्होंने आज तक इतनी कुर्बानी की है और काफ़ी कष्ट उठाया है, उनकी परीक्षा का समय अब आया है । उनको तो अब दूसरे रास्ते पर चलना है। जिस तरह हमारे राजाओं ने स्वीकार कर लिया है कि वे स्वेच्छा से दूसरे रास्ते पर चलेंगे । उसी तरह जागीरदार लोगों को भी समझाने की कोशिश में कर रहा हूँ। उन्हें भी अब दूसरे रास्ते पर चलना है । इसी तरह हम सब समझ-बूझकर सच्चे रास्ते चलें, तब हमारा काम बन सकता है । आखिर हमने राजपूताना का एकीकरण किया और हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता प्राप्त की, इस सब का मतलब क्या है ? आज हमारे मुल्क में हमें स्वेच्छा से काम करने का पहला अवसर मिला है, उसका हमें पूरा उपयोग करना है । ईश्वर की कृपा से गुलामी की इतनी सदियों में भी इस धरती में जो ऋद्धि-सिद्धि भरी पड़ी है, उसमें से कोई चोरी नहीं कर सका। तो उसको हमें निकालना है । जो धन हिन्दुस्तान के उदर में भरा है, उसको हमें निकालना है और यदि हम सच्चे दिल से काम करेंगे तो हमारे मुल्क में गरीबी नहीं रहेगी। लेकिन उसके लिए हमें शान्ति चाहिए । उसके लिए हम एक दूसरे से प्रेम करें और अपनी-अपनी मर्यादा को समझें । खाली पुलिस के डंडे से शान्ति नहीं चाहिए । इस तरह शान्ति रह जरूर सकती है, लेकिन वह काम की चीज नहीं है। असल चीज़ वह है, जब कम से कम पुलिस का उपयोग करना पड़े। राजपूताना में आज नए साल का प्रारम्भ है । यहाँ आज के दिवस साल बदलता है । शक बदलता है। यह नया वर्ष है । तो आज के दिन हमें नए महा- राजस्थान के महत्त्व को पूर्ण रीति से समझ लेना चाहिए। आज अपना हृदय साफ कर ईश्वर से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें राजस्थान के लिए योग्य राजस्थानी बनाएँ । राजस्थान को उठाने के लिए, राजपूतानी प्रजा की सेवा के लिए, ईश्वर हमको शक्ति और बुद्धि दे । आज इस शुभ दिन हमें ईश्वर का आशीर्वाद मांगना है। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सब मेरे साथ राजस्थान की सेवा की इस प्रतिज्ञा में इस प्रार्थना में, शरीक होंगे। जयहिन्द !