पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७० । भारत की एकता का निर्माण उसके बाद हमारे आज के सदर भी उसके प्रधान बने । लेकिन अहमदाबाद का ट्रेड यूनियन, जो एक सच्चा ट्रेड यूनियन था, जो मजदूरों का अपना संगठन था, वह उससे अलग ही रहा । क्यों अलग रहा? क्योंकि हम लोगों ने सोचा कि भारत में पाश्चात्य ढंग पर जो ट्रेड यूनियन बन रहा है, उस पर तो परदेशी ढंग के ट्रेड यूनियनों का ज्यादा असर रहेगा। हम यही समझे कि हमें उससे अलग रहना ही अच्छा है, क्योंकि उनका मन्तब्य है कि अपना ध्येय प्राप्त करने के लिए वे चाहे कोई मीन्स ( उपाय) उपयोग करें, चाहे कोई हथियार उपयोग में लाएँ , वह उपाय स्वच्छ हो, ऐसी उनको परवाह नहीं । उनका मानना यह भी है कि ज्यादातर तो अस्वच्छ हथियार से ही जल्दी काम होता है। नतीजा यह हुआ है कि हर रोज ट्रेड यूनियन और मिल मालिकों में झगड़ा होता रहता है और हड़ताल करने की कोशिश जारी रहती है । आज की हालत तो ऐसी हो गई है कि पुलिस को गोली चलाने पर मजबूर किया जाता है। यह सब गान्धी जी ने पहले से देख लिया था। उन्होंने सलाह दी कि इस ट्रेड यूनियन में जाने का कोई फायदा नहीं । वहाँ तब जाना चाहिए जब हमारी मेजोरिटी ( बहुमत ) वहां हो, हमारे बहुमत से अच्छा कोम चल सकता हो, और उन लोगों को हम कुछ कन्ट्रोल (नियन्त्रण) में रख सकें। वैसी हालत हो, तब हमें वहां जाना चाहिए, नहीं तो नहीं । तो हम अहमदाबाद में, गुजरात में और जगहों पर भी अपनी रीति से काम कर रहे थे। हमने यह देखा कि हमारे मुल्क में मजदूरों में काम करने- वाले समझदार लोग बहुत कम हैं। तब हमने निश्चय किया कि अच्छे कार्यकर्ता ( वर्कर्स) तैयार करने चाहिए। हमने देखा कि अहमदाबाद के संगठन के रूप से तब तक ढंग से काम करने वाले मेहनती लोग हमें न मिलें, हमारा काम नहीं चलता। इसलिए, हमने एक हिन्दुस्तान मजदूर संघ तैयार किया। यह एक अलग संस्था थी, उसमें केवल कार्यकर्ताओं को शिक्षण दिया जाता था और बताया जाता था कि मजदूरी में किस तरह से काम हो सकता है, जिससे मजदूरों को फायदा हो, और मुल्क को भी फायदा हो । उस ढंग से हमने काम शुरू किया। उसमें मैं खुद भी था, डा. राजेन्द्रप्रसाद थे, शंकरराव देव थे, जय- रामदास थे, और कांग्रेस के बाकी कितने ही मित्र भी थे। गुलजारीलाल नन्दा और खंडूभाई भी थे। हम लोगों ने अहमदाबाद में कितने ही वर्कर्स को तैयार किया और उन्हें बाहर प्रान्तों में भेजा जाने लगा। ये लोग अपने अपने ढंग से