पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३०

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कलकत्ता २५ थी, उस सब चीज में बहुत उदारता से हमने उनको उनके हिस्से से भी ज्यादा देने की कोशिश की। जब हमने उनको रुपया देने का किया, उस समय हमने कह दिया था कि आपको यदि पांच सौ करोड़ रुपया चाहिए और इतना हिस्सा लेने का आपका हक न हो, तो हम ज्यादा देने के लिए भी तैयार हैं। लेकिन मैंने लिखकर दे दिया था कि अगर इन रुपयों से आपको काश्मीर में गोली चलानी हो, तो हम इस तरह से रुपया नहीं देंगें । हाँ, तुम में ताकत हो तो ले जाओ। ठीक है । हम खुशी से रुपया तो तब देंगे, जब यह सब फैसला हो जाए । जो आपका रुपया है, उसमें हम कोई दखल नहीं देंगे । हमने आपके साथ मिल कर जो फैसला किया, वह तो एक कन्सेण्ट (रजामन्दी का देना-पावना) डिक्री है । लेकिन रजामन्दी से जो फैसला होगा, वही तो लागू होगा। तो जिस रोज काश्मीर का फैसला हो जाए, उस रोज पैसा ले जाओ। इसी तरह कुछ लोग कहते हैं कि हमारा पैसा नहीं देते और जो कुछ आपने फैसला किया, उसमें से पलट जाना चाहते हैं। हमारी पलटने की नीयत नहीं है। अगर हमारी यह नीयत होती, तो हम फैसला करते ही क्यों। तब हम कहते कि जाओ कोर्ट में। हमने इस तरह से काम नहीं किया। तो मैं बार-बार उन्हें सुनाना चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ हमारी कोई अदावत नहीं है, और न हम कोई बुराई करना चाहते हैं । तुम्हारे साथ हमें कोई झगड़ा भी नहीं करना । लेकिन हम यही कहते हैं कि आप मेहरबानी करके हमें इधर पड़े रहने दीजिए, हमें यहां अपना काम करने दीजिए। इधर मैं आप लोगों से भी कहना चाहता हूँ कि मेहरबानी करके आप आपस में झगड़ा छोड़ दीजिए । थोड़े दिन हमें लगकर काम करने दीजिए। यदि परदेशियों ने यहां दो सौ साल बिगाड़ किया, और देश को हुकूमत बुरी तरह से चलाई, तो एक दो साल हमको भी थोड़ा बिगाड़ कर लेने दीजिए। देखिए तो सही, यहाँ क्या चीज होती है। क्योंकि हम यदि बिगाड़ करेंगे, तो उस बिगाड़ से भी कुछ अच्छा ही होगा, बुरा नहीं होगा। यह आप समझ लीजिए। आज हमारा प्रथम काम यह है कि हमारे मुल्क में ज्यादा माल पैदा हो, इस धरती में से ज्यादा अनाज पैदा हो, हमारे मुल्क में बहुत से कारखाने बनें और कारखानों में बहुत माल पैदा हो । तभी हमारे मजदूर भी तगड़े हो सकेंगे । अमेरिका को देखिए, वह दुनिया का सब से अधिक घनिक मुल्क है । वहाँ मजदूर भी तगड़े हैं, मालिक भी तगड़े हैं, और सब लोग भी वहाँ तगड़े हैं।