पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३०६

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( २३ ) अभिनन्दन समारोह में दिल्ली, ३१ अक्तूबर, १९४९ प्यारे भाइयो और बहनो, जिस प्रेम से आप लोगों ने मेरा स्वागत किया, उससे मेरा दिल भर आया है। मेरे साथियों ने जिन शब्दों में भाव प्रकट किए, उससे अब इस मौके पर मेरी ज़बान पर और भी बोझ पड़ गया है और क्या कहना, क्या न कहना, यह समझ में नहीं आता । वैसे तो मेरे प्यारे भाई राजेन्द्र बाबू ने आप लोगों से कहा कि मैं कम बोलनेवाला आदमी हूँ। क्यों ? मैं क्यों कम बोलता हूँ? एक सूत्र है, जो मैंने सीख लिया "मौनं मूर्खस्य भूषणम्"* 1 (हँसी) ज्यादे बोलना अच्छा नहीं । वह विद्वानों का काम है । लेकिन जो हम बोलें, उसी के ऊपर हम चल न सकें, तो हमारा बोलना नुकसानकारी है। इसलिए भी में कम बोलता हूँ। लेकिन जब मौका आता है, तो मेरी जबान खुलती है । जब समय नहीं है, तब मैं बोल नहीं सकता । अब आप लोगों ने जो प्रार्थना मेरे लिए की, जो आशीर्वाद मुझ दिया, उससे मुझे थोड़ा उत्साह होता है कि और भी आगे कुछ जीवन बढ़ाना, कुछ सेवा करना ठीक है। बाकी यह साल मेरे लिए काफी कठिन बीता है। खाली शारीरिक कठिनाइयों की तो मैं परवाह नहीं करता,

  • मौन मूर्ख का भूषण है।