पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३१४

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अभिनन्दन समारोह में २८७ से मुल्क को घाटा पड़ता है । मुल्क में घाटा पड़गा, तो आपको जो मिलता है, वह भी नहीं मिलेगा । में मजदूर को भी समझाना चाहता हूँ कि थोड़े रोज कम मिले, तो कम दाम पर भी ज्यादा माल पैदा करो। पीछे आपको ज्यादा मिलेगा। इसी तरह से हमारे जो कर्मचारी हैं, सरकार में काम करने वाले हैं, उनको भी समझाना चाहता हूँ कि आज थोड़ी कमर कसो । और कुछ आपको देने को नहीं, तो बखशीश भले ही न दो, जो बचा सको, सर- कार में जमा करो । बह तुम्हारे अपने लिए भविष्य में रहेगा। लेकिन हमारा उद्योग बढ़ने दो। आज हमारे पास धन ज्यादा पैदा करने के लिए न पैसा है, न उद्योग बढ़ाने के लिए पैसा है, लेकिन जैसा मैंने कहा कि एक एक बूंद से ममुद्र भरा जाता है । इस तरह से करोड़ों आदमी थोड़ी थोड़ी बचत करके भी दे दें, तो यह पूंजी उनको भविष्य में काम देनेवाली है। उसी में हिन्दुस्तान की आर्थिक आजादी समाई है। दूसरी तरह से यह आजादी नहीं मिलेगी। धनिकों को भी समझा-बुझाकर हम कुछ न-कुछ लेने की कोशिश करेंगे। उन्हें छोड़ेंगे नहीं । लेकिन हम अपने रास्ते करेंगे। मैं तो अपने रास्ते पर ही काम कर सकता हूँ। लेकिन उसमें आप लोगों को यह विचार न होना चाहिए कि धनिकों से पहले लेना चाहिए। हम पीछे देंगे । उससे तो हमें एक प्रकार का अहंपूर्व ( मैं पहले ! ) करना चाहिए। गरीब को भी दिल में लाना चाहिए कि हम गरीब तो हैं, लेकिन हमारा सारा मुल्क गरीब है। इस मौके पर हमें कुछ-न कुछ कुर्बानी करनी है। सरकार की तरफ से यदि कोई मांग आए, तो उस मांग को जितना हो सके उतना पूरा करने की कोशिश हम करेंगे। हम इस तरह से नहीं चलेंगे, तो हमारा काम होनेवाला नहीं है। और यही काम इस साल हमें करना है। क्योंकि मुझे अब भीतर का कोई डर नहीं है । बाहर का खतरा तो जब होगा, तो उसमें सारी दुनिया भस्मी- भूत होनेवाली है। क्योंकि आज जो बड़ी-बड़ी ताकतें हैं, जिनके पास खाना- पीना मजे में और बहुत है, लेकिन उन्हें खाना हम नहीं होता है, क्योंकि उन्हें रात-दिन यही डर रहता है कि अब क्या होगा? यह मुल्क ज्यादा बढ़ जाएगा, वह मुल्क ज्यादा बढ़ जाएगा। हमें इस प्रकार का कोई डर नहीं है । क्योंकि गान्धी जी ने हमको सिखाया है कि हमें किसी का डर नहीं रखना। मैं चाहता हूँ कि जैसे सब ने आज प्रार्थना की, ऐसे सब मजहबबाले सोग मुहब्बत से एक दूसरे के साथ मिलकर रहें। कोई झगड़ा फसाद न करें।