पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३१८

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( २४ ) चौपाटी, बम्बई ४ जनवरी, १९५० बहुत समय के बाद मैं आपके पास आया हूँ। मेरी ख्वाहिश थी कि कोई ऐसा समय आ जाए, जब बम्बई में मेरे समय का उपयोग भी हो जाए और मैं आपसे मुलाकात भी कर लूं। पिछली दफे में एक महीने तक इधर रहा था। लेकिन तब किसी को मिल न सका था। जिसका मुझे बहुत दुख था। जब भी में बम्बई आता हूँ, तब सबसे मिलने की मेरी ख्वाहिश होती है। पर आज मेरी प्रकृति ऐसी नहीं है कि मैं सब लोगों से अलग अलग मुलाकात कर सकू । इसलिए मैने आप सब लोगों से इस जल्से में एक साथ मिलने की हिम्मत की है। बम्बई हमारे हिन्दुस्तान की राष्ट्रीय प्रवृत्ति का केन्द्र-स्थान है। आज हमारे राष्ट्र की जो प्रगति या दुर्गति है, उसका माप निकालने को एक स्थान बम्बई से ही देश भर का सब तरह का माप मिल जाता है। जब बम्बई बिगड़ता है तो सारा हिन्दुस्तान बिगड़ता है। यह समझा जाता है कि बम्बई नाराज हो, तो सारा हिन्दुस्तान नाराज और बम्बई सुखी हो तो सारा भारत सुखी होता है । उसका मतलब यह नहीं कि देहात में जो करोड़ों लोग पड़े हैं, उनके सुख दुख का केन्द्र स्थान भी बम्बई है । ऐसा नहीं है । बम्बई की रोशनी और जलाली और बम्बई का आक- र्षण भारत के देहातों में रहनेवाले करोड़ों लोगों के सुख-दुख का माप नहीं है। भा० १९