पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३१९

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२६० भारत की एकता का निर्माण तो भी इस बात का काफी अन्दाज बम्बई में मिल जाता है कि हिन्दुस्तान की नाड़ कैसी है। इसलिए बम्बई को हमें एक शानदार शहर के रूप में रखना चाहिए। लेकिन हिन्दुस्तान का हाल भी यहाँ हमें समझना चाहिए। मैं जानता हूँ कि बम्बई में जो उमंग और उत्साह हुआ करता था, उसमें आजकल कुछ ठंडाई आई हुई है। यहाँ भी कुछ नाखुशी और कुछ नाराजी दिखाई देती है। उसकी बजह कुछ भी हो, लेकिन हिन्दुस्तान में आज जो परिस्थिति है, उसका असर बम्बई पर भी पड़ना लाजमी है। आजकल जो कुछ भी भला-बुरा होता है, उसका दोष कुछ लोग अक्सर सरकार पर डालते हैं। उसका उन्हें अधिकार है । उन्हें जो सुख दुख होता है, उसमें वे सरकार को जिम्मेवार मानते हैं। यह बात कहां तक सही है, वह दूसरी बात है । लेकिन आज मैंने देखा कि जो लोग कभी पुरानी सरकार का भला नहीं चाहते थे, जो आजादी के जंग में हमारा साथ देते थे, सरकार का साथ नहीं देते थे, वे सब भी अब इस सरकार की नुकताचीनी करने में शरीक हो गए हैं। लोगों को जैसे एक प्रकार का शौक हो गया है कि वे हर चीज में सर- कार की टीका-टिप्पणी करें। एक हद तक यह बात ठीक भी है। उस से सरकार एक तरह से जागती रह सकती है। लेकिन जब हर रोज हम एक ही बात चिल्लाते रहें कि यह सरकार तो नालायक है, ढंग की नहीं है, इसमें काफी घूसखोरी है, इसमें रिश्वत लेनेवाले हैं, और काला बाजार करने वाले चोर डाकुओं को भी यह सरकार कुछ सजा नहीं दे सकती तो इन बातों से मुल्क का भला नहीं होगा । जो लोग ऐसी बातें करते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि आखिर यह सरकार है क्या चीज़ ? उन्हें बताना चाहिए अब तो सरकार जनता की प्रतिनिधि है और जनता उसे नहीं चाहती तो निकालने का उपाय क्या है । तब लोगों को मालूम होगा हम सब उस सरकार के जिम्मेवार हैं, और हम सब का इसमें हिस्सा है । तो जो सुख-दुख आज हम पर आ रहा है, उसको हमें हिस्सा बाँट लेना पड़ेगा। मैं यह नहीं कहता कि सरकार जो कुछ करती है, वह सब सही होता है । क्योंकि जिन लोगों के हाथ में राजतन्त्र है, उन्होंने पहले कभी राजतन्त्र नहीं चलाया था। सारी जिन्दगी तो उन्होंने पर- देशी सल्तनत को हटाने का काम किया। उसके लिए वे जेलों में गए, लड़े और इस प्रकार की एक प्रवृत्ति चलाई कि जिससे सिद्ध हो कि सरकार के कामों में जनता की कोई जिम्मेवारी नहीं है। हिन्दुस्तान आजाद हुआ और अब