पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३२१

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२६२ भारत की एकता का निर्माण कहेंगे कि सरकार का कसूर है, मजदूरों का कसूर है । कोई कहेगा किसानों का कसूर है, गन्ना पैदा करनेवाले का कसूर है । मतलब यह कि सभी दूसरों को दोष देंगे। सरकार कहेगी हम क्या करें, हमको तो कुछ मालूम न था। हम एक रास्ते से चलते थे कि बीच में यह रुकावट आई । हमने पूरी कोशिश की। कसूर दूसरे का है । जो शक्कर खानेवाले थे, वे कहेंगे हम शक्कर बिना खाए मर गए। हालांकि शक्कर बिना कोई मरता नहीं है और न आग टूट पड़ता है । यह ऐसा नहीं है कि खाने-पीने की तकलीफ हो । जो कोई दुनिया में राज करते हैं, उनकी भी बहुत मुसीबत है । लेकिन वे बरदाश्त करते हैं और उसका उपाय सोचते हैं। तो उसमें से सरकार अपनी जिम्मेबारी से नहीं बच सकती है । लेकिन भविष्य में ऐसी चीज़ न हो, वैसा उपाय हम कर सकते हैं, और कसूर किसका है, यह बाद में मालूम पड़ेगा । लेकिन सरकार क्या करें? उसमें के चन्द आदमियों को पकड़े तो उसमें भी शोर मचता है कि इसको पकड़ा, उसको पकड़ा, यह भी गलती है । तो चीनी का उपाय जो कुछ करना है, हम करेंगे। लेकिन यह छोटी बात थी, उसने बड़ी बात बना दी। लेकिन जिसकी आदत वैसी पड़ गई है, वह तो करेगा ही । उनसे बड़ी बातें बनाई, लेकिन उन बातों में सार नहीं था। तो मेरी सलाह है कि छोटी बातों को इतनी बड़ी बनाकर शोर मचाना इससे हमारा काम नहीं होता है। यदि सरकार को हटाना हो तो छोटी बात को बड़ी बनाकर शोर मचाना ठीक नहीं । सरकार को बदलना आसान चीज है । उसके लिए आप की तैयारी होनी चाहिए, उसका बन्दोबस्त करना चाहिए। नहीं तो यह चीज सदा ऐसी बनती रहेगी, जिसमें हमेशा गलतियां होती रहेगी। सबको साथ मिलकर काम करना चाहिए । आज हमारे मुल्क में दो चीजों की बड़ी कमी है, जिनकी कि जरूरत है । एक तो अनाज की । हर हिन्दुस्तानी को मालूम पड़ गया है कि हमें करोड़ों का अनाज बाहर से भेंगाना पड़ता है लेकिन उसका उपाय क्या है ? जब तक हमारे मुल्क में ज्यादा अनाज पैदा न करें, तब तक ऐसा होता रहेगा । कोई कहेगा उसके लिए भी सरकार जिम्मेवार है। पर अब इस तरह की बातों से हमारा काम नहीं चलेगा। सच बात तो यह है कि हमारे देश में अनाज की भी उतनी कमी नहीं, जितनी लोग मानते हैं। मैंने बराबर कहा कि यदि लोग सच्चे हों, तो थोड़ी