पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३२५

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२६६ भारत की एकता का निर्माण नहीं रक्खा। यह तो पहले भी था। आजादी के साथ जो कठिनाइयां आई है उन्हें भी हमें हटाना है । इसके हटाने में आपको साथ देना होगा। विना मिहनत किसी का पैसा ले लेना आम तौर से आदमी को ठीक लगता है, लेकिन यदि मुल्क का हित उससे बिगड़ता है, तो इन्सान को वह काम नहीं करना चाहिए। पहले हम अब की बनिस्बत अधिक धन पैदा करें, उसके बाद वह सब हो सकता है। आज हमारे हिन्द का जो बजट है, उसका यदि अध्ययन करें, तो मालूम पड़गा कि हमारे मुल्क का असली हाल क्या है। हमें धनिकों के ऊपर जितना कर का बोझ डालना चाहिए, उससे भी ज्यादा हमने डाला है । लेकिन उस सब से जो पैसा आता है, उसमें से दो हिस्सा हमें हिन्दुस्तान के बचाव के लिए लश्कर रखने पर खर्च कर देना पड़ता है। कोई कहता है कि लश्कर का खर्च कम करो। लेकिन हमारी एक मर्यादा है, और उस मर्यादा से आगे हम नहीं जा सकते । क्योंकि मुल्क के दो टुकड़े होने से जो जख्म मुल्क को लगा है, वह अभी भरा नहीं है । अपने पड़ोसी के साथ अभी हमारी मुहब्बत नहीं है। हमें उम्मीद थी कि दो टुकड़ा हो जाने के बाद इधर पूरी शान्ति हो जाएगी और दो टुकड़ा करने का काम भी पूरी मुहब्बत से होगा । उसके बाद वह अपना घर चलाएंगे, और हम अपना । मगर वह अभी तक हुआ नहीं। जब तक अपने पड़ोसी के साथ हमारा सम्बन्ध ठीक नहीं हुआ, तब तक हमें अपना घर संभालने में ऐसी चौकसी करनी चाहिए कि कोई खतरा न हो। अगर हम ऐसा न कर सकें तो हमें सरकार से हट जाना चाहिए। इस प्रकार की हमारी तैयारी न हो, तो वह गुनाह होगा। यह सारी मुसीबत हमारी ही नहीं है। यह उनकी भी मुसीबत है, और वह इसे जानता भी है । उधर अभी तक कुछ लोग बात करते हैं कि लाल किले पर हम झण्डा लगा- एंगे । इधर कलकत्ता में एक जलसा हुआ, जिसमें लोगों ने प्रस्ताव किया कि हिन्दुस्तान का जो दो टुकड़ा हुआ है, उसे हम एक कर देंगे। दो साल के बाद आज जरा हिम्मत की है, तो वह हमारे काम में रुकावट डालने के लिए को है । इससे दोनों देश एक नहीं हो सकते । जब हमने दो टुकड़ा मंजूर किया, तब किसी ने नहीं कहा कि यह टुकड़ा न करो। सब ने कहा कि दो टुकड़ा होना अच्छा है । तो जिन लोगों ने आज यह बात उभारी है, वह उसी मनोवृत्ति का उदाहरण है, जिस मनोवृत्ति का नतीजा एक यह हुआ कि गान्धीजी का खून