पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३२८

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चौपाटी, बम्बई २६६ जो लश्कर रखती है, उस सबके लिए जो कुछ हमें चाहिए, वह सब हमें अपने यहां बनाना चाहिए । हिन्दुस्तान में उसके लिए हमें कारखाने चाहिएँ । हमारे जो पुराने कारखाने हैं, आज उनको भी हमें बढ़ाना है । अब नये कारखाने भी हमें चालू करने हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हमारे मुल्क को उद्योग में मत डालो। हमारा मुल्क तो कृषि प्रधान है। यहाँ के अधिकांश लोग तो देहात में पड़े हैं। यह सब सही है । हम गान्धी जी के साथ सारी उमर रहे। हम कोई ऐसे पागल तो नहीं हो गए कि उनको भूल जाएँ । लेकिन गान्धी जी की बात का यह मतलब नहीं कि हम कारखाने खतम कर दें, या जो हैं सिर्फ उनको रखें और नये न बनाएँ । उसका यह भी मतलब नहीं कि हम सिर्फ देहात का ही काम करते रहें, या सिर्फ देहात में जो पैदा हो वही खाएँ । गान्धी जी चाहते थे कि हर गाँव स्वावलम्बी हो, हर गाँव अपने गाँव में सब झगड़ों का फैसला करे, हर चीज वे अपने यहाँ पैदा करें। हम भी वही चाहते हैं। लेकिन हम देखते हैं गाँवों में से भाग-भाग कितने ही लोग बम्बई, कलकत्ता और दिल्ली में आते हैं । देहात को ठीक करने में तो कुछ समय जरूर लगेगा ही। लेकिन इस तरह कारखानों को बन्द करने से क्या लाभ होगा? अगर हमें नये कार- खाने नहीं चलाने तो यह फौज कहाँ से पाली जाएगी? उसका काम चलाने के लिए देहात में से तो रास्ता नहीं बनेगा। इसके लिए पेट्रोल चाहिए, वह देहात में कहाँ मिलेगा? इसके लिए सामान चाहिए, यूनीफार्म चाहिए, कपड़ा चाहिए, मोटर चाहिए, लारी चाहिए, और भी कितनी ही चीजें चाहिएँ । अपनी बड़ी फौजों का इन्तजाम हम देहात में नहीं कर सकते। इसके लिए कारखाने चाहिएं, उसके लिए लोहा चाहिए । लोहे का एक कारखाना जम- शेदपुर में है, उससे हमारा काम नहीं चलता। बाहर से लोहा मँगाना पड़ता है। उसके लिए बहुत दाम देना पड़ता है। तो हमें सोचना है कि उस का क्या इन्तजाम करें। और कोई इन्तजाम हमारे पास है नहीं। तो इन सब कामों के लिए हमें कारखाने भी चाहिएँ । उधर हम चाहते हैं कि गाँव भी सुखी हों और वे समृद्ध बनें । तो हमें दोनों का मिश्रण करना पड़ेगा। हमें कारखाने तो चाहिएँ, पर उन्हें कौन चलाएगा ? यदि गवर्नमेंट चला सके तब तो ठीक । लेकिन अगर सरकार न चला सके, तो जिनको उद्योग का अनुभव है, और उनको जो चला सकते हैं, उन लोगों की मार्फत हमें यह काम करना पड़ेगा।