पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३३७

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मुझे बंगाल का दर्द है कलकत्ता, २७ जनवरी, १९५० बहुत दिनों के बाद आप लोगों का दर्शन करने का मौका मिला । बहुत दिल चाहता था मिलने के लिए । बार बार मैंने कोशिश की, लेकिन अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से मैं हिम्मत नहीं करता था। लेकिन आखिर ईश्वर की कृपा से मुझे आप लोगों से मिलने का जो अवसर मिला है, इस अवसर पर मैं आप से दो शब्द कहना चाहता हूँ। मैं बंगाल के दर्द को पूरी तरह से जानता हूँ। मुझे रात-दिन इसका ख्याल रहता है। बंगाल के लिए मेरे दिल में काफी दर्द और हमदर्दी रहती है। लेकिन कितना भी दर्द और कितनी भी आपत्ति आए, बंगाल की जनता पर हमारी पूरी श्रद्धा है । यह कोई पहला मौका नहीं है। सारे हिन्दुस्तान की आजादी की नींव जब से डाली गई, तब से आज तक जब-जब मुसीबतें आई, तब-तब बंगाल ने बहादुरी दिखाई। पहले तो वंगाल पर, हिन्दुस्तान पर, जब परदेसी हुकूमत थी, तब परदेसी हुकूमत को हटाने के लिए जो कोशिश हुई, उसमें बंगाल के नेताओं का और बंगाल के नौजवानों का जो हिस्सा था, उसके कारण बंगाल पर काफी जुन्म किया गया। उसका आपने बड़ी हिम्मत से और बड़ी बहादुरी से मुका- बला किया। उसके लिए सारा हिन्दुस्तान बंगाल का ऋणी और उस