पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३३९

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३०८ भारत की एकता का निर्माण पड़ा और हम सब ने मान लिया कि उसके सिवाय कोई चारा नहीं है । तब हिन्दुस्तान में कोई ऐसा नहीं था, जो अपनी आवाज ज़ोर से उसके विरोध में निकाले। क्योंकि सब समझ गए थे कि उसके सिवाय कोई और रास्ता दिखाई नहीं देता। और साथ ही हमने सोच लिया कि कलकत्ता हमारे पास न रहे, तो हम किसी भी हालत में टुकड़े की बात मंजूर नहीं कर सकते । मुसलिम लीग के नेता इसको नहीं मानते थे। वे जिसे पाकिस्तान मानते थे, उसको तो हम मंजूर नहीं कर सकते थे। उनका कहना था कि उन्हें सारा ही लेना है । सारा बंगाल और सारा पंजाब । उसका झगड़ा चलता रहा। आखिर उन्होंने भी मान लिया और हमने भी मान लिया । लेकिन इसे मानने के बाद भी उसका जो नतीजा आया, और जो खून-खराबी हुई, उससे हिन्दुस्तान को चोट लगी। वह चोट अभी तक ठीक नहीं हुई, और उसको ठीक होने में कुछ समय लगेगा । उसमें बंगाल को काफी घाव लगे । उसका घाव गहरा है, उसके भरने में भी समय लगेगा। उसके लिए धीरज चाहिए, हिम्मत चाहिए। आपके पास पहले भी काफी ऐसे मौके आए, जिनमें आपने धीरज और हिम्मत दिखाई । आज भी वैसा ही मौका है कि सब से काम लिया जाए। हिम्मत रखो । अच्छा दिन जरूर आएगा, लेकिन अपने हाथ से हमें परिस्थिति को बिगाड़ना नहीं चाहिए । अपने काम को हमें हिम्मत, धीरज और समझ पूर्वक करना पड़ेगा। गुस्से से कोई काम नहीं होगा। जल्दवाजी करने से भी काम बिगड़ेगा। हमारे जो भाई हमसे अलग हुए हैं, उनमें हिन्दू और मुसल- मान दोनों हैं। मैं पंजाब की बात छोड़ देता हूँ। मैं खाली बंगाल की बात करता हूँ। वहाँ भी दोनों हिन्दू और मुसलमान सुखी हों, इधर भी दोनों सुखी हों। हमारा घाव जल्दी भर जाए, हमें ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। दोनों तरफ से हिम्मत, धीरज और बुद्धि से काम लेना पड़ेगा। पुरानी बातें हम में से कई लोग न इधर भूल सकते हैं और न वहाँ भूल सकते हैं, और इसी से बार-बार झगड़ा होता है । तो बंगाल का दर्द किसको मालूम नहीं है ? हमारे जो लोग वहां पड़े हैं, वे आज परदेशी हो गए । जो कल तक हमारे भाई थे और हमारे साथ हमारी आजादी की लड़ाई में शामिल थे, वे सब आज परदेशी हो गए । हम और वं ऐसे अलग हो गए कि एक दूसरे के दुख में सहानुभूति तक नहीं दिखा सकते हैं।