पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३४४

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मुझे बंगाल का दर्द है में? जो लोग रात दिन तंग करते थे, दबाते थे, और मारने में भी झिझकते नहीं थे, उन्होंने क्या सिविल लिबर्टी दी थी आप को ? आज तो हम जो चाहें, सो कर सकते हैं। क्या यह सिविल लिबर्टी नहीं है ? आज जिसके दिल में जो आता है, सो लिखता है, जिसके दिल में जो आता है, सो कहता है । तो आप की सिविल लिबर्टी, किसने छीन ली? इन चन्द लोगों ने ही उसे छीना, जिन्होंने यह टेररिस्ट (आतंकवाद ) काम चलाया है। आप को उन्हें रोकना है । खाली पुलिस पर यह काम डाल देने से देश का काम नहीं चलेगा। कोई लोकशाही राज्य पुलिस के डंडे से नहीं चलता। हाँ, हमारी तो यह आदत ही पड़ गई है कि सब बातों में पुलिस को दोष दें। पुलिस का नाम ही बदनाम है । हमें यह आदत अब छोड़ देनी चाहिए। हमें अपना रास्ता बदलना चाहिए । हम रात-दिन जिस पुलिस के पीछे लगे हुए थे, वह पुलिस दूसरी थी। आज हमारी जो पुलिस है, वह दूसरी है। आज की पुलिस के लोग एक तरह से हमारे वालंटियर हैं, स्वयंसेवक हैं। इनको जो तनख्वाह मिलती है, वह हम पर इतना बोझ नहीं है कि जितना पड़ना चाहिए। जितना इन्हें देना चाहिए उतना हम उन्हें दे नहीं सकते, क्योंकि हमारा मुल्क गरीब है । अभी बहुत लोग बेकार हैं। उनको पूरी तनख्वाह तो हम दे नहीं सकते हैं, लेकिन आज ये लोग जो काम कर रहे हैं, उसके लिए आपके दिल में सहानुभूति न होगी, तो आप को पछताना पड़ेगा। क्योंकि दो तरह से ही काम चलता है । या तो आप लोग कांग्रेस के स्वयंसेवकों से अपना काम चलाइए या पुलिस से। कलकत्ता के एक अखबार में मैंने पढ़ा कि इस जलूस के लिये २० हजार रुपया खर्च किया गया। यह खर्च क्यों करना पड़ा? क्योंकि हम पहले कांग्रेस में जिस तरह सभा कर सकते थे, उस प्रकार आज नहीं कर सकते। क्योंकि हमारा सारा ढंग बदल गया है । ढंग क्यों बदल गया? क्योंकि हमने पुरानी आदतें छोड़ी नहीं है। हमारी कांग्रेस का ढाँचा, जैसा पहले ताकतवर था, वैसा अब नहीं रहा । अब वह टूट गया है। तो हमें इसको ठीक करना चाहिए । हमें कांग्रेस के संगठन को ठीक करना चाहिए। जितने कांग्रेस में काम करनेवाले भाई हैं, उनसे भी मैंने मिलने की कोशिश की। में उनसे मिला, उनके साथ बातचीत की, पुलिस आफिसरों के साथ बात की, और मिनिस्टरों के साथ भी बात की। में सबसे मिला, सब की बात मैंने समझने की कोशिश की।