पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५२

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मुझे बंगाल का दर्द है ३२१ जाएगा । इनके लिए पुलिस रखो, इनके लिए जेलखाना रखो, इनको खाने- पीने को दो। यह सब बाहर से तो नहीं आएगा, हमको ही तो देना पड़ेगा। तो हमारे जो बेचारे भाई बेकार पड़े हैं, जो बाहर से आए हैं, जो रिफ्यूजीज़ हैं, उन्हीं को ज्यादातर वे बहकाते हैं। हालांकि इस से रिफ्यूजी बेचारों को तो कोई मदद नहीं मिलती। बल्कि उल्टा काम होता है । आप लोगों को मेरी सलाह है कि इस रास्ते को छोड़ दो। जब शान्ति हो, तभी हम रचना कर सकते हैं । इधर जो लोग पड़े हैं, उनको भी सुख हो, और बाहर जो दुखी हो रहे हैं, उनका भी कुछ इन्तजाम हो। हम बार-बार सुनते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान में हमारे जो भाई पड़े हैं, वे आजकल बहुत तंग किए जा रहे हैं और उनका वहाँ रहना मुश्किल हो गया है । यदि यह चीन आगे बढ़ी तो वहाँ से और भी लोग इधर आएँगे। हमारे यहाँ तो इतनी जगह भी नहीं है । और वे आएँ, तो फिर क्या होगा? उसका रास्ता हमें बनाना पड़ेगा । ऐसे तो चलेगा नहीं। कोई-न-कोई रास्ता तो सोचना ही पड़ेगा। लेकिन उसके लिए पहले आप अपना घर ठीक कर लो और मेहरबानी करके कोई झगड़ा न करो। बाहर से किसी को यह मालूम नहीं पड़ना चाहिए कि हमारे घर में कोई रोग है, कोई खटपट है या कोई झगड़ा है । तब इन लोगों को भी शान्ति होगी। ये लोग, जो वहां पड़े हैं, उनके दिल पर क्या बीतती होगी कि हम इधर इतने दुख में पड़े हैं, और उधर कलकत्तावाले क्या कर रहे हैं ? हां, इस रास्ते पर चलने से अगर उनका दुख रफा हो, तो मैं भी उनका साथ दूं। लेकिन यह नहीं होगा। इससे तो उन का दुख बढ़ता जाएगा। तो हमें इस प्रकार का काम करना है कि जिस से देश के धन की वृद्धि हो। एक तो हमें किसानों को समझाना है कि जितना बने, उतना ज्यादा अन्न पैदा करो। जितना धान आज पैदा करते हो, जितना अनाज पैदा करते हो, अपने खाने के लिए जरूरी भाग रखो, बाकी गवर्नमेंट को दे दो। सरकार ने जो दाम मुकर्रर किया है, उसी दाम पर उसे दो । हमारे कई लोग वहाँ लोगों को समझाते हैं कि सरकार को दाम मुकर्रर करने का क्या अधिकार है, यह तो तुम्हीं करो। तुम न दो तो सरकार को ज्यादा देना पड़ेगा। वह भख मार कर देगी। पर सोचो तो कि सरकार कहाँ से लाएगी? देगी तो ठीक । लेकिन कहाँ से देगी ? किस के हिस्से में से निकाल कर देण? ये जो इस तरह भा० २१