पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५७

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३२६ भारत की एकता का निर्माण प्रदर्शनी का असल काम तो उसे शान्ति से देखने का है। उसमें क्या चीज़ है और क्या-क्या चीज हमारे मुल्क में बनती है और क्या-क्या चीज देहात में बनती है, क्या-क्या चीज़ शहरों में बनती है, क्या-क्या चीज़ ग्रामोद्योग से, हाथ से बनती है, क्या-क्या चीजें मशीनों से बनती हैं, यह सब हमें शान्ति से देखना चाहिए। फिर हमें सोचना है कि इनसे कौन सी चीजों को हमें आगे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, और कौन-सी चीज़ों को हमें खुद इस्तेमाल करने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे मुल्क को फायदा हो । मैंने जो यह प्रदर्शनी खोलने का बोझ उठाया है, वह इसी मतलब से कि आज से ठीक २० साल पहले २६ जनवरी १९३० को हमने एक प्रतिज्ञा ली थी। वह यह कि हमें अपने देश की सम्पूर्ण आजादी चाहिए । परदेशी हुकूमत का कोई साया भी हमारे ऊपर बाकी नहीं होना चाहिए। हमारी वह प्रतिज्ञा भगवान् की कृपा से पूरी हुई। वह तो ठोक हुआ। लेकिन जिस तरह से हमें स्वराज्य मिला है, उसमें उतना कष्ट नहीं मिला, जितना उसकी प्राप्ति में उठाना चाहिए। उसके अनेक कारण हैं, लेकिन उन कारणों में जाने की जरूरत नहीं। जो काम आसानी से होता है, जिसमें ज्यादा कष्ट नहीं उठाना पड़ता है, उसकी पूरी कीमत प्रायः मालूम नहीं पड़ती। तो स्वराज्य हमको बहुत आसानी से मिल गया। अगर स्वराज्य के लिए किसी ने कष्ट उठाया तो गान्धी जी ने उठाया और उनकी कृपा से और उनके आशीर्वाद से हमारे मुल्क का इतना बड़ा यह काम पूरा हुआ । वह तो ठीक है। उनके पीछे हम चन्द लोग चले । कई लोग जेलखाने में गए, कई लोगों ने अपनी मिलकियत की बरबादी की, कई लोग शहीद भी हो गए। लेकिन हिन्दोस्तान की समस्या आसान नहीं थी। यह बहुत बड़ा काम था। यह इतना बड़ा मुल्क है और इस में अनेक प्रकार के मजहब और अनेक प्रकार की पृथक् पृथक् भाषाएँ हैं। इतने बड़े मुल्क को एक बनाना, इसकी इतनी रियासतों को एक बनाकर, एक संगठन में डालकर, सारे मुल्क को आजादी दिलाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन इतने बड़े काम के मुका- बले में हमको बहुत कम कष्ट उठाना पड़ा, इसलिए हमें उसकी कदर कम है। तो भी इस २६ तारीख (१९५०) को सारे मुल्क को मालूम पड़ गया कि हमारा मुल्क आज किसी भी तरह से किसी परदेशी हुकूमत की साया में या किसी और मुल्क के काबू में नहीं है। तब सारे मुल्क में एक प्रकार की खुशहाली का