पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५९

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३२८ भारत की एकता का निर्माण हैं, ऐसी बातें करनेवाला कोई बाहर से तो नहीं आता। लोग सरकार को उसका दोष देते हैं। किसी हद तक यह भी सही होगा। लेकिन ऐसी बातों से सारी दुनिया में हमारी बदनामी होती है कि ये लोग ऐसे हैं कि ऐसे मौके पर भी एक दूसरे को मदद करना और एक दूसरे का साथ देना तो एक ओर रहा, अपने स्वार्थ में पड़कर एक दूसरे का गला काटते हैं। यह हमारे लिए अच्छी बात नहीं है। यह गान्धी जी का रास्ता नहीं है और अगर हमें सच्चा स्वराज्य चाहिए, तो हमें उन्हीं के बताए रास्ते पर चलना होगा। इस प्रदर्शनी में जो चीजें आपको दिखाई जाएंगी, उनमें एक चीज़ तो यह है कि हमारे मुल्क में ज्यादा अनाज पैदा करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए, कहाँ किस प्रकार काम हो रहा है, कहाँ कहाँ किस किस तरह का अनाज पैदा होता है। यदि हमें बाहर से कम अनाज लाना है और अपने ही मुल्क में सब अनाज पैदा करना है, और इस तरह सच्चे स्वराज्य की नींव डालनी है, तो पहले से हमें यह समझ लेना चाहिए कि हमारा मुल्क इन सब चीजों के लिए दूसरे मुल्कों पर निर्भर न हो। अपने मुल्क में जितनी चीजें हमें चाहिए, उतनी पैदा कर लेना, यह एक कठिन काम है। हमारा मुल्क इतने सालों तक गुलामी में पड़ा हुआ था और परदेशी लोगों के फायदा उठाने का मैदान बना हुआ था। हम इतने साल से दबे हुए और पिछड़े हुए थे कि हमारा मुल्क एकदम कंगाल बन गया था। अब स्वराज्य मिलते ही वह अमीर और खुशहाल बन जाएगा और सब चीजें उसे मिल जाएंगी, वह तो हो नहीं सकता। लेकिन अगर हम सब लोग साथ मिलकर काम करें, तब वह चीज़ चल सकती है । तो गान्धी जी ने हमें बताया था कि हमारा स्वराज्य तो सूत्र के तांते से जुड़ा हुआ है । हमें चरखा चलाना चाहिए, यह उन्होंने कहा था। वह तो हमने कुछ नहीं किया। अब यह स्वराज्य जो आया है, वह असली नहीं, नकली है। असल स्वराज्य तो तभी हो सकता है जब हम सब साथ मिलकर, जितनी चीजें हमें अपने मुल्क के लिए चाहिए, वे सब अपने मुल्क में पैदा कर लें। इसके लिए हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी। जो चीज़ हमें चाहिए, बह चीज़ अगर हमारे मुल्क में बनती हो, तो उसी को इस्तेमाल करना हमारा कर्तव्य है। सच्चे स्वराज्य की प्राप्ति के लिए हमें आज प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि २६ तारीख से, या तो इसी महीने से, कि हम परदेशी बस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करगे। हां, कोई ऐसी चीज़ हो, जो हमारे मुल्क में नहीं बनती, और उसे 1