पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३६१

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भारत की एकता का निर्माण से आती है, वे हमें अपने हाथों से बनानी है। यदि हमें अपना स्वराज्य पक्का बनाना है, तो हमें किसी परदेश पर अवलम्बित नहीं रहना चाहिए, निर्भर नहीं रहना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी है। अगर बदकिस्मती से हमारा झगड़ा अपने पड़ोसी से चलता है, तो उस से हमें नुकसान होता है। हमारे यहाँ कलकत्ता में, जितने कारखाने हैं, पाकि- स्तान के सारे जूट का उपयोग उन्हीं में होता है । इन कारखानों के लिए पूर्वी पाकिस्तान के किसान अपने यहाँ जूट पैदा करते हैं । तो हमारे झगड़ें का असर यह हो रहा है कि वहां के किसान भूखों मर रहे हैं, क्योंकि उनके जूट का उपयोग इधर होता था। तो उसमें किस का कितना कसूर है, इस गहरे पानी में यहाँ उतरना अच्छा नहीं है। लेकिन इस समय पर मैं इतना ही कहना चाहता हूँ, कि हिन्दुस्तान की सरकार ने जितनी कोशिश हो सकी, उतनी की कि हमारे दोनों देशों के बीच हमारा पुराना रोजगार अच्छी तरह से जारी रहना चाहिए, उसमें कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए । इसी से दोनों का फायदा लेकिन उनके साथ हमने जितने जितने कौल-करार किए, जितने एग्रीमेंट किए, उनपर जब अमल करने का समय आता है, तब हम पाते हैं कि उन पर सिर्फ हमारी तरफ से अमल होता है। आखिर हम थक गए और हमने कहा कि अगर तुम इसी तरह से करते रहोगे, तो कोई कौल-करार करना बेकार होगा। इस हालत में तो तुम अपना करो, हम अपना करेंगे । जिस जूट का पैसा हम पहले ही दे चुके हैं, उतना जूट भी हमको नहीं देते हो। तो यह अच्छी बात नहीं है । तुम इस तरह से करते हो कि हमारा कपड़ा लेते थे, बह भी अब नहीं लेते हो । और परदेशों से लाखों-करोड़ों रुपये का कपड़ा मंगवाते हो। हमारा कपड़ा परदेश में जाता है और वहाँ से वहीं कपड़ा, उनके वहाँ भेजा जाता है । वह इस प्रकार का उल्टा धंधा करते हैं । एक समय ऐसा था कि हम लंकाशायर और मैन्चेस्टर के कपड़े का वाइकाट करते थे। आज हमारी मिलों का बना कपड़ा लंकाशायर जाता है। कितना उल्टा तरीका हो गया है । वहाँ से ठीक-ठाक कर उसे पाकिस्तान में भेजा जाता है । तो इस तरह से दोनों मुल्कों को नुकसान होता है। हमने उन्हें समझाने की कोशिश की कि इस तरह से तुम्हें क्या फायदा होता है ? इस से तो दोनों को नुकसान होता है । लेकिन हमारे नुकसान को बचाने का एक ही तरीका हो सकता है कि हम जितने करार करें, उनपर ठीक तरह से अमल होगा,