पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३६२

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दिल्ली प्रदर्शनी का उद्घाटन इस बात की कोई गारंटी हम की जाए। ऐसा न हो, तो उससे अच्छा यह है कि हमारा मुल्क उन पर निर्भर ही न रहे। हमारे मुल्क में जितना जूट चाहिए, उतना हम स्वयं पैदा कर लें। जितनी रूई हमें चाहिए, उतनी रूई हम यहीं पैदा करें। जितना अनाज हमें चाहिए, उतना हम अपने यहां पैदा करें। वह काम बहुत कठिन है । आज हम बहुत-सा अनाज बाहर से मंगवाते हैं और उनके वहाँ काफी अनाज पड़ा है, इतना अनाज पड़ा है, कि वह पड़े-पड़े सड़ भी सकता है । क्योंकि जितनी अच्छी अच्छी जमीन थी, जिसमें पानी का इन्तजाम था, इरीगेशन ( सिंचाई ) का इन्तजाम था, वह सब हमारे जिन लोगों के पास थी, वे सब तो वहां से निकाल दिए गए और अब इधर आकर पड़े हैं। वे सब इवर मार मार फिर रहे हैं। उनका बन्दोबस्त करना, उनका गुस्सा भी सहन करना और उनका दुख भी देखना, यह अब हमारा काम है। उनकी वहाँ जो जगह पड़ी है, वह सच्चा सोना क्योंकि उसमें अनाज बहुत पकता था, रूई बहुत पकती थी, वह सब वे दबा कर बैठ गए हैं। हम बार-बार चिल्ला- चिल्ला कर कहते हैं कि उसका फैसला करो तो वे फैसला नहीं करते हैं और जिद्द करते हैं। इस तरह से हमारा उनका झगड़ा चलता है और इससे दोनों मुल्कों का नुकसान होता है । तो उसका फैसला एक ही तरह से हो सकता है कि खुले और साफ दिल से, जिस तरह से दो भाई बैठ के बातें करते हैं, उस तरह से हमें आपस में बैठकर समझौता कर लेना चाहिए। हमारा मुल्क बाहर के किसी मुल्क पर निर्भर रहेगा, तो वह गिर जाएगा। उसे गिरने नहीं देना चाहिए। मैं एक खाली पाकिस्तान की ही बात नहीं कहता हूं, हमें किसी भी मुल्क के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहिए । हमारे मुल्क को अपने लिए जितनी चीजें चाहिएँ, वे हम अपने मुल्क में पैदा करें, यह हमारा पहला काम है । उसमें इस प्रदर्शनी से काफी लाभ होगा। इसमें देखने की बहुत सी चीजें हमें मिलेंगी। उसमें सीखने को बहुत कुछ मिलेगा। हमारे काम में कौन-कौन सी त्रुटियाँ हैं, वह भी देखने को मिलेगी । इस सब चीजों को देखना और जानना हमारा कर्तव्य है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम भी सुखी हों और हमारा पड़ोसी भी सुखी । हमारी नीयत यह न होनी चाहिए कि हमारे पड़ोसी को दुख हो। लेकिन जब तक हमारे पड़ोसी का बर्ताव हमारे साथ इस प्रकार का न हो कि वह भी हमारे सुख में सुखी है या हमारे दुख में दुखी है, तो हमें दूर से उसे नमस्कार कर अपना इन्तजाम पूरा कर लेना चाहिए।