पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३७०

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हैदराबाद लेकिन इसमें हमारी जो जिम्मेवारी है, जो जवाबदारी है, उसका ख्याल भी हमें रखना पड़ता है। यदि हिन्दुस्तान की सरकार इस प्रकार अपनी जिम्मे- वारी का ख्याल न रखे, तो वह हुकूमत चलाने के लायक न बनेगी। तो सब से पहले तो हमें यह देखना है कि आपका संगठन किस प्रकार का है, वह कितना पक्का है, आप लोगों में आपस का कौमी भेद भाव कितना हट गया है और बाकी कठिनाइयों पर कहाँ तक काबू पाया जा सका है। मैं आपकी कोई शिकायत नहीं करने आया हूँ। लेकिन एक बात मैं आपसे ज़रूर कहूँगा । जैसा कि बहुत दफे पहले भी कह चुका हूँ कि एक ही संस्था है, जो यह क्लेम (दावा) कर सकती है कि शासन उसके हाथ में आना चाहिए। यह संस्था कांग्रेस है। दूसरा तो कोई दावा भी नहीं कर सकता। कांग्रेस ही ने दावा किया है, और उसका अधिकार है ! तो उसमें सब से बड़ी बात यह है कि कांग्रेस में जितने दल थे, उन्हें आपस में मिल जाना । कोई ऐसा मान ले कि सत्ता मिलने के बाद सब ठीक हो जाएगा, तो वह बड़ी भारी गलती होगी। सत्ता मिलने के बाद तो झगड़ा और भी अधिक होनेवाला है, और तब बहुत-से नये दल भी बन सकते हैं, सता कोई आसान चीज नहीं है। वह भली चीज़ नहीं है, बुरी चीज़ है। उसमें बहुत बड़ी चमक है और उससे दिमाग पलट जाता है । जब यह राज्य का सारा कार्य-भार किसी भी संस्था के पास आएगा, तो उनके प्रतिनिधियों को नींद लेने का भी समय नहीं मिलेगा। तो सब से पहले हमें कांग्रेस के संगठन में से पक्षापक्ष मिटाने की कोशिश करनी है। इस काम में यहाँ कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है। जव हमने देखा कि ये लोग आपस में मिले हैं, यह न जानते हुए भी कि ये दिल से मिले हैं कि ऊपर से मिले हैं, हमने यहां के मिलिट्री गवर्नर को हटा लिया और एक सिविल एडमिनिस्ट्रेटर, जो आज आपका प्रधान मन्त्री है, भेजा। यह आदमी हमारी स्टेट मिनिस्ट्री का सेक्रेटरी था, जो सारे देशी राज्यों व रियासतों की देखभाल करता था । हमारी सर्विस में जो सब से अधिक अनुभवी लोग थे, उसमें से भी चुना हुआ एक आदमी हमने आपके पास भेजा है, जो आपकी गाड़ी को ठीक रास्ते पर चला सकेगा और यह बता सकेगा कि आप अपना काम किस तरह करें। तो हमने शुरूआत की । अब कांग्ग्रेस का संगठन अगर सच्चे दिल से एक हुआ है, तो उससे मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन मैंने सारी जिन्दगी भर सारे हिन्दुस्तान का संगठन चलाया और किसी आदमी के चेहरे पर से मैं पह-, भा० २२