पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३७७

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भारत एकता का निर्माण उन्होंने मरते दम तक नहीं छोड़ी थी। मैं उनका साक्षी हूँ । मरने से सिर्फ पाँच मिनट पहले एक घंटे तक मेरी उनसे बात-चीत हुई और मैं जब चला गया तो तुरन्त एक आदमी आया और उसने बताया कि एक पागल आदमी ने फाइरिंग किया और बापू तो मर गए। यह बहुत बरी बात हुई। लेकिन मेरी तब जो एक घंटे तक बातचीत हुई थी, वह तो मेरे दिल में भरी है कि वह क्या चाहते थे । हिन्दुस्तान का टुकड़ा होना उन्हें पसन्द नहीं था। लेकिन इस तरह से वह टुकड़ा नहीं कराना चाहते थे और अब कराची जाना चाहते थे। वहां जाकर वह मुसलमानों को दिल से समझाना चाहते थे कि हिन्दुओं को ठीक रक्खो । इधर यही बात वह हिन्दुओं को समझाते थे, बिहार में जाकर और जगह पर जाकर, दिल्ली में जाकर, रात-दिन कोशिश करके भी वह सफल नहीं हुए। लेकिन. आखिर जब तक यह चीज नहीं होगी, तब तक हिन्दुस्तान में शान्ति होना असम्भव है, यह आप मान लीजिए । आप कहते हैं कि फैसला कर लीजिए। हमारी करोड़ों रुपये की रकम वे दबा कर बैठे हैं। उसका फैसला कर लीजिए। अब यह काश्मीर का मामला है, उसका फैसला कर लीजिए। आप कहते हैं कि हम काश्मीर को नहीं छोड़ेंगे, हिन्दुस्तान कहता है कि हम नहीं छोड़ेंगे। तो इसका फैसला कौन करेगा? हिन्दुस्तान के मुसलमानों से मैं पूछता हूँ कि आप की क्या राय है ? जब तक आप अपना दिल नहीं बदलोगे, तब तक मोहब्बत कैसे होगी? तो आप लोगों को भी पाकिस्तानियों से कह्ना चाहिए कि इस तरह से लड़ने से फायदा क्या ? दो-ढाई साल तो हो गए । शेख अब्दुल्ला को समझाओ, काश्मीर के मुसलमानों को समझाओ । यदि वे पाकिस्तान में जाना चाहते हैं तो हम जबरदस्ती थोड़े ही रखने वाले हैं। लेकिन वे चाहते हैं कि हमें इधर ही रहना है, क्योंकि हमारा तो सेक्यूलर ( धर्म निरपेक्ष) स्टेट है। और हमने काश्मीर के चन्द मुसलमानों के लिए ही इसे सेक्यूलर स्टेट थोड़े ही बनाया है। तीन करोड़ मुसलमान पहले से ही हमारे यहाँ पड़े हैं। जितने आप के यहां मुसलमान है, करीब उतने ही हमारे यहां भी हैं। उनका बोझ हम किस तरह से उठाएँगे, अगर रात-दिन लड़ते रहेंगे । तो इधर के मुसलमानों को समझना चाहिए कि उनका सभी कुछ यहां ही है; यहीं घर है, यहीं रिश्तेदारी है, यहीं मुहब्बत है । उनको कहना चाहिए कि भई झगड़ा छोड़ो, उससे कोई फायदा नहीं होने वाला है। हम पहले समझते थे कि बहुत फायदा होगा। लेकिन अब हमने समझ Sa