पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/४१

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C भारत की एकता का निर्माण तो मैं आपसे बड़ी अदब से कहना चाहता हूँ कि मैं मुसलमानों का दोस्त हूँ और दोस्त का काम है कि सच्ची बात कह दे और धोखाबाजी न करे । तो मैं कभी मुसलमानों के साथ गलत बात नहीं करूंगा। मैं साफ-साफ कहना चाहता हूँ कि अब हिन्दुस्तान के मुसलमानों की वफादारी का वख्त आया है। उनमें से प्रत्येक के दिल में हिन्दोस्तान के लिए पूरी-पूरी मुहब्बत हो और वह समझे उसे हिन्दुस्तान में ही रहना है। उन्हें समझ लेना चाहिए कि पाकि- स्तान से उनका कल्याण नहीं होनेवाला है । पाकिस्तान उनकी रक्षा नहीं कर सकता। तब उनका कर्तव्य हो जाता है कि जिस नाब में वे बैठे हैं, उसी नाव का हित सोचें, क्योंकि उन्हें भी उसी नाव से चलना पड़ेगा । नाव चलाने में उन्हें साथ भी देना पड़ेगा। तो जिस तरह से पाकिस्तान के लोग कर रहे हैं, उसमें उन्हें ठीक-ठीक, सीधी बात कहनी पड़ेगी कि यह रास्ता गलत है । उस रास्ते से जाने में कोई फायदा नहीं है । अब यह कहा जाता है कि पाकिस्तान और हिन्दुस्तान में यदि लड़ाई होगी, तब उसमें भी साथ देंगे। अरे भाई ! वहाँ तक तो न जाओ, तो खुली बात तो करो। पीछे हम देखेंगे कि क्या बात. होती है । लड़ाई होगी, तब देखा जाएगा कि कौन किसका भरोसा करता है। सच्ची बात तो यह है कि दो घोड़ों पर सवारी नहीं हो सकती, एक घोड़े पर ही सवारी होगी। अपना घोड़ा पसन्द कर लो। लखनऊ ही के कई लोगों ने अपना घोड़ा पसन्द कर लिया और समझ लिया, दो घोड़ों की सवारी नहीं चलेगी। कांस्टीच्यूएंट असेम्बली में जब हमारा कांस्टीच्यूशन बन रहा था, तब वहाँ लखनऊ मुसलिम लीग के एक लीडर थे, उनसे मैने साफ-साफ कह था कि आप इधर सेपरेट इलेक्ट्रेट ( पृथक् निर्वाचन ) और रिजर्वेशन ( सुरक्षित स्थानों) की बातें करते हैं। यही बातें करके आपने हिन्दुस्तान के टुकड़े कराए। अब जो बाकी हिन्दुस्तान बचा है, उसका भी आपको टुकड़ा कराना है क्या? यही इरादा हो, तो अब मेहरबानी करके आप पाकिस्तान में चले जाइए। आप के इधर रहने से कोई फायदा नहीं है। तब वह पाकिस्तान चले गए। यह ठीक हुआ। अच्छी बात है। अब कौन कहता है कि तुम पीछे लौट आओ। भाई, हम भी यह नहीं चाहते हैं, कि पाकिस्तान और हिन्दोस्तान अभी जल्दी-जल्दी मिल जाएँ । यह तो तब कह सकते हैं, जब कि पाकिस्तान का स्वाद खाते-खाते दाँत खट्टा होकर गिर जाएँ, तब आगे की बातें करेंगे। अभी तो आप वहाँ ही बैठो। लेकिन हमको हमारा काम करने दो।