पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारत की एकता का निर्माण इस सब के साथ-ही-साथ ४० लाख लोगों को इधर से वहीं भेज दिया, और ५० लाख लोगों को उधर से इस तरफ ले आए। ये सब किस तरह से आए और गए ? पैदल चलनेवालों की ६०-६० मील लम्बी कतारें थी, दस-दस लाख आदमी एक काफिले में थे। दोनों तरफ से कतारें चलती थीं और वे दो तीन महीनों तक चलती रहीं। ऊपर से पानी पड़ता था और नीचे भी पानी ही पानी था। रोग फैल गया, कॉलरा फैल गया, खाने-पीने की बड़ी मुसीबत थी। इस तरह से इन मुसीबतों में लोगों का अदला-बदला हुआ । राह में अमृतसर जैसा सिक्खों का बड़ा शहर पड़ता था। सिक्खों ने हठ पकड़ ली कि हम इधर से मुसलमानों को नहीं जाने देंगे। तब मैंने अमृतसर जाकर, उन्हें समझाया कि ऐसी बेवकूफी न करो। उसमें राष्ट्रीय स्वयं-सेवक-संघवाले भी थे, तो मैंने उनसे भी कहा कि तुम यह क्यों नहीं देखते हो कि हमारे दस लाख आदमी भी उधर पड़े हैं। लड़ना है, तो लड़ने का ढंग भी सीखना चाहिए । तब उन लोगों ने मेरी बात मान लो और सब को अमृतसर के बीच में से जाने दिया। हमारे लोग भी इधर चले आए। इस सब हेरा-फेरी में हमने कान्स्टीटयूएंट असेम्बली का जलसा भी किया। अपना कान्स्टीटयूशन ( संबिधान ) बनाने की कोशिश न सिर्फ हमने जारी रक्खी, बल्कि करीब-करीब उसे पूरा कर लिया। इतने लोग मारे गए, लाखों की मिल्कियत नहीं रही, लाखों के पास खाना-पीना नहीं रहा, हजारों रोते-कलपते आदमी हमारे पास फरियाद करने आए। उनको भी हमने, जहाँ तक बन पड़ा, आश्वासन दिया और साथ ही इतना काम भी किया। इसके साथ देशी रियासतों का भी काम कर लिया। तो चार महीने में हमने इतनी कार्रवाई की। इतना काम कोई भी सरकार करती, इतना बोझ किसी भी सरकार पर आता, तो चाहे वह कितनी भी मजबूत सरकार क्यों न होती, उसके टूट जाने को संभावना थी। लेकिन ईश्वर की कृपा से हमारी गवर्नमेंट जहाँ तक बन पड़ा, अपना काम निबाहती रही। और इस सबमें हमारी इज्जत काफी बड़ी है। हमने जूनागढ़ में जो कुछ किया, काश्मीर में जो कुछ किया, उससे लोगों को कुछ विश्वास आया कि यह लोग भी कुछ ताकतवर तो इस हालत में हमें अब आगे क्या करना है ? चार महीना तो हमने डटकर काम किया; अब हमें क्या करना है ? अब मैं आपसे कहना चाहता