पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/५९

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५२ - भारत की एकता का निर्माण किया, कई लोगों ने नापसन्द किया। और अभी तक उसी की चर्चा चल रही है कि हमने ठीक किया या ठीक नहीं किया। लेकिन कपड़े के बारे में कुछ हमारे हाथ की बात नहीं है । उसमें हमें मदद चाहिए। एक तो कपड़े की मिलों वाले उद्योगपतियों की मदद चाहिए, दूसरे इन कारखानों के जो मजदूर वर्ग हैं, उनकी मदद चाहिए, तीसरे कुछ व्यापारी लोग हैं, उनकी भी मदद चाहिए। अब आप जानते हैं कि हमारे हिन्दुस्तान में आज ऐसी हालत है कि खाने के लिए जितना अनाज हमको चाहिए, वह हम पूरा पैदा नहीं कर सकते । पैदा करना चाहिए, लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं है । इसलिए हमको बहुत तक- लीफ होती है और बाहर के मुल्कों से करोड़ों मन अनाज लाना पड़ता है। उसका दाम बहुत देना पड़ता है। क्योंकि बाहर के मुल्कों के लोग हम से काफी दाम लेते हैं, जो अपने वहाँ अनाज का दाम बह नहीं। लेकिन बाहर भेजने के लिए उसमें से काफी नफ़ा ले के दाम लेते हैं, तो उसमें हमको बड़ा नुकसान होता है । लेकिन हम लाचार हो गए हैं। क्योंकि जब तक हम उतना अनाज पैदा न करें, जितना हमारे मुल्क को चाहिए, और हम बाहर से भी न लावें, तो जैसी बंगाल में हालत हुई थी, वैसे ही लोग शहरों में मरने लगे, तो वह बर्दाश्त नहीं हो सकता। हमने हिन्दुस्तान को एक तरह से तो आजाद किया। जिन्दगी भर की हमारी कोशिश थी कि हमें परदेशी हुकूमत को यहाँ से हटाना है। हटा तो लिया लेकिन जब हमने इंडिया या हिन्दुस्तान को आजाद कर लिया और उसकी हुकूमत का हमने चार्ज लिया, तब हमारे सामने जो समस्याएँ आई, उन्हें हल करने के लिए काफी बोझ हमारे ऊपर पड़ा है और वह हमारी कमर तोड़ रहा है । वह एक अनाज का ही सवाल नहीं है, कपड़े का सवाल नहीं है । परदेसी लोग अनेक मुसीबतें हमारे सर डाल गए हैं। हमने यह तो समझा था कि दो सौ साल के बाद जब एक हुकूमत चली जायगी, तो उसमें से कुछ ऐसी चीजें जरूर रह जाएंगी, जिनको हमें ठीक करना पड़ेगा और इस कार्य में हमें मुसीबत भी उठानी पड़ेगी। लेकिन हमने यह नहीं सोचा था कि हमारे लोग ऐसे पागल हो जाएंगे, कि हम भी खुद कुछ ऐसी नई समस्याएँ पैदा कर लेंगे कि उनका हल करना अत्यन्त मुश्किल हो जाएगा। तो जो कई सवाल हमने खुद में पैदा किए हैं, उन्हें किस तरह से हल किया जाय, वह सवाल मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ।