पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६२

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बम्बई, चौपाटी भी बहुत दर्द हुआ* । परन्तु इधर न आता तो और भी मुसीवत होनेवाली थी। इसलिए में आया तो सही, लेकिन मैं भी पूरी तरह अस्वस्थ तरह से मैं आपके सामने बोल रहा हूँ। लेकिन जो दिल से बात निकलनी चाहिए, जल्दी जल्दी वह निकलती भी नहीं, इतना दर्द उसमें भरा है । तो हमने हिन्दुस्तान को एक तरह से बाँध तो लिया। अब हमारी कोशिश है कि हिन्दुस्तान को उठाओ। इस उठाने की कोशिश में यदि हमको आप लोगों का साथ मिल जाए, तो अभी भी हमारी उम्मीद है कि हमने कुछ ज्यादा नहीं गंवाया है । क्योंकि हमारा इतना बड़ा मुल्क है । इस मुल्क में कई सदियों से हमारी हुकूमत तो थी नहीं। हम लोग छिन्न-भिन्न थे । यहाँ परदेसी हुकूमत ही चलती रही। अब करीब एक हजार साल के बाद हमारे पास यह मौका आया है कि ८० प्रतिशत हिन्दुस्तान हमने एक कर लिया है। उसको उठाने का हमें यह पहला मौका मिला है। यदि हम इसका सदुपयोग करें, तो दुनिया के और बड़े-बड़े मुल्कों के साथ हम बैठ सकते हैं और सारे एशिया की नेतागिरी हम ले सकते हैं। साथ ही और देशों को रास्ता बता सकते हैं। यही हमारी कोशिश है, उसमें हमको आपका साथ मिलेगा, कि नहीं, यही हमारी चिन्ता है। हमें उम्मेद तो है, लेकिन कभी कभी हम निराश भी हो जाते है। १५ अगस्त के बाद हमने काम तो किया, और एक तरह से बहुत काम किया । उस काम से हमारी गिरी हुई प्रतिष्ठा फिर से हमें प्राप्त होने लगी, क्योंकि दुनिया देख रही थी कि इन लोगों पर क्या बोझ पड़ा है। हिन्दुस्तान की वर्तमान सरकार की जगह पर यदि दूसरी कोई सरकार होती, तो क्या करती, यह भी दुनिया जानती थी। बहुत से मुल्क अब यह सोचने लगे हैं कि जैसा वे हमें समझते थे, वैसे बुरे हम लोग नहीं हैं। हिन्दुस्तान की जड़ें बहुत मजबूत होती जा रही हैं और उनको वे हिला नहीं सकेंगे। चार महीने में दो प्रान्तों के टुकड़े किए और कई प्रान्तों में प्लेबीसिट ( जनमत ) लिया। आसाम में से एक टुकड़ा निकाल लेने का हौसला भी कर लिया गया। बंगाल का टुकड़ा कर लिया और पंजाब का भी टुकड़ा कर लिया और उसके

  • गांधी जी उन दिनों दिल्ली में अपने जीवन का अन्तिम उपवास कर

रहे थे।